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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र :96 T प्रिय चेतन, धर्मलाभ, परमात्मा की परम कृपा से कुशलता है। तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। इस पत्र में आज मैं वेदनीय-कर्म जीव क्या-क्या करने से बाँधता है - यह बताता हूँ। वेदनीय कर्म के दो प्रकार हैं : शातावेदनीय और अशातावेदनीय। पहले मैं शातावेदनीय कर्म बाँधने के कारण बताता हूँ। १. गुरु-भक्ति, २. क्षमा करना, ३. करुणा (जीवदया) करना, ४. व्रतपालन करना. (अणुव्रत, महाव्रतों का पालन करना,) ५. दान-देना, ६. कषायविजय करना, ७. धर्म में दृढ़ रहना, ८. मन-वचन-काया के योगों को प्रशस्त रखना। शातावेदनीय कर्म बाँधने के ये मुख्य आठ हेतु हैं। १. पहला कारण है गुरुभक्ति करना । गुरु का अर्थ है माता, पिता, कलाचार्य और धर्मगुरु | माता-पिता की भक्ति करने से, सेवा करने से, उनको शांति-संतोष देने से, उनकी शुभ भावनाएँ पूर्ण करने से, उनके पास परलोक की आराधना करवाने से शातावेदनीय कर्म बँधता है। वैसे जो व्यवहारिक शिक्षा देते हैं, उन अध्यापकों की भी उचित भक्ति-विनय करना चाहिए | उनके साथ भद्र व्यवहार करना चाहिए। धर्मगुरु की सेवा-भक्ति बहुत ही शुभ भाव से करनी चाहिए। उनको आहारपानी देना, उनको वस्त्र, पात्र, औषध आदि देना। यदि वे बीमार हो तो उनकी सेवा करना । औषध और अनुपान उचित समय पर देना। यदि वृद्ध अथवा बाल २५२ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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