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(अध्यापक, आचार्य आदि) द्वेष होता है, तो ज्ञानावरण- दर्शनावरण कर्म बँधता
५. घर में लड़का-लड़की पढ़ रहे हों, माता या पिता किसी काम से पढ़ते हुए बच्चों को उठाएँ और उनसे दूसरा काम करवाए, तो पढ़ने में अंतराय होता है,
पढ़नेवालों को कुछ न कुछ तकलीफ देता रहे, शांति से पढ़ने न दें, उसकी किताबें छीन ले... वगैरह उपद्रव करें,
झगड़ा कर, पढ़नेवालों को पढ़ने न दे... इससे जीव ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्म बाँधता है। ६. ज्ञानी पुरुषों का अपमान करता रहे। 'तुम को पढ़ाना ही नहीं आता है।' 'तुम्हारे में बुद्धि ही नहीं है...।'
'तुम्हारी आवाज गधे जैसी है...। इस प्रकार ज्ञानी पुरुषों का अपमान करने से ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्म बँधता है।
७. ज्ञानी पुरुषों की, जिनमंदिरों की, जिनमूर्ति की, जिनागम की निंदा करता
है
- 'ज्ञानी पुरुषों की बातें फालतू होती है। - जिनमंदिरों की कोई जरुरत नहीं है...। - इतनी सारी मूर्तियाँ नहीं चाहिए | - इस जमाने में धर्मशास्त्रों की बातें निरर्थक हैं।' इस प्रकार निंदा करने से ज्ञानावरण कर्म बंधता है। ८. ज्ञानी पुरुषों का अवर्णवाद करता है।
जो दोष ज्ञानी पुरुषों में नहीं होते हैं, वैसे दोषों का आरोप करता है । उनको नीचा दिखाने का हमेशा प्रयत्न करता है। __चेतन, ये तो मुख्य-मुख्य हेतु बताए, अब मैं कुछ वर्तमानकालीन आशातना के प्रकार बताता हूँ -
- संडास में पेपर पढ़ना, किताब पढ़ना, - अखबार के अथवा अक्षरवाले कागज में खाना,
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