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लोग अपनी बात मानें ही, ऐसा आग्रह नहीं रखना चाहिए | वैसी इच्छा भी नहीं रखनी चाहिए । 'मेरी बात घरवालों को... पत्नी-पुत्र-पुत्री-पुत्रवधू... सभी को माननी चाहिए, ऐसी इच्छा ही नहीं रखनी चाहिए। इच्छा ही दुःख का मूल है। यदि मन में से यह निकल जायं, तो मनुष्य मन की बहुत शांति अनुभव कर सकता है। घरवालों से, कम से कम अपेक्षाएँ रखनी चाहिए। दूसरे लोगों से भी अपेक्षाएँ ज्यादा नहीं रखनी चाहिए। तो 'अनादेय-नामकर्म' के उदय में भी आप स्वस्थ रह पाएँगे।
चेतन, यदि तेरा 'आदेय-नामकर्म' उदय में है, तेरी बात ज्यादातर लोग मानते हैं, तो तू दूसरों को सरलता से सन्मार्ग पर प्रगति करवा सकता है। सुकृत करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- दूसरों से तू दान दिलवा सकता है, - दूसरों से तू शील का पालन करवा सकता है, - दूसरों से तू परोपकार के कार्य करवा सकता है, - दूसरों से तू आत्मकल्याण की प्रवृत्ति करवा सकता है।
दूसरों से अपने स्वार्थ साधने का काम नहीं करना। दूसरों को स्वार्थवश अपनी माया-जाल में फँसाने का काम नहीं करना! दूसरों को उत्पीड़न नहीं करना।
आदेय-नामकर्म के उदयवाले महापुरुषों ने कितने अच्छे कार्य किए हैं - उसका इतिहास पढ़ना। उन लोगों की रोमांचक कथाएँ पढ़ना।
- उन महापुरुषों ने लाखों लोगों को अहिंसक बनाए, - उन महानुभावों ने लाखों लोगों को निर्व्यसनी बनाए, - उन पुण्य-पुरुषों ने लाखों लोगों को सदाचारी बनाए, - उन महापुरुषों ने लाखों लोगों को धर्मप्रेमी, राष्ट्रप्रेमी बनाए!
चेतन, ऐसा करने से पुनः नया 'आदेय-नामकर्म' बँधता हैं। अच्छे कार्य करने-करवाने के उच्चतम भावों में श्रेष्ठ पुण्य-कर्मबंध होता है, और जब वे पुण्य कर्म उदय में आते हैं, तब और ज्यादा सत्कार्य करने की शक्ति प्राप्त होती है, संयोग प्राप्त होते हैं। 'अनादेय-नामकर्म' का उदय आने पर दीनता नहीं करना । 'क्या करूँ? मेरा
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