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प्रभाव समझना, जो अवयव अच्छे नहीं लगते हों, वह अशुभ-नामकर्म का प्रभाव समझना चाहिए।
चेतन, नाभि के ऊपर के अवयव, सामान्य नियम से शुभ कहे गए हैं। कभीकभी नाक-कान-आँख... मुख वगैरह अवयव अशुभ लगते हैं! एक दिन जो शुभ लगता है, वही अवयव क्षतिग्रस्त हो जाता है तो वह अशुभ-अप्रिय लगता है।
एक श्रीमंत घराने की लड़की ने मध्यम कक्षा के घराने के लड़के के साथ शादी की। लड़की को आकर्षण था लड़के के मुख का, उसकी आँखों का, होंठों का, नाक का | परंतु एक दिन लड़के का मुख अचानक जल गया । मुँह कुरूप हो गया, बेडौल हो गया। पत्नी ने कह दिया : 'मुझे अब तेरा मुँह देखना पसंद नहीं... कितना कुरूप हो गया है? अब मैं तेरे साथ नहीं रह सकती।' वह अपने मायके चली गई!
एक लड़की ने एक लड़के को कहा : 'मैं तेरे साथ शादी रचाऊँगी।' लड़के ने पूछा : 'तुझे मेरी कौन सी बात ज्यादा पसंद है?'
लड़की ने कहा : 'तेरी आँखें!'
शादी हो गई। घर में दो बच्चे भी पैदा हो गए। घर में संपत्ति आ गई। परंतु एक दिन अचानक पुरुष की दोनों आँखें चली गई। वह अंधा हो गया । धीरे धीरे पत्नी का प्रेम कम होता चला। एक दिन बहुत प्यारी लगती थी... अब वे आँखें जरा भी पसंद नहीं! जो शुभ लगता था वह अशुभ लगने लगा! एक घर में गाय थी। परिवार में बहुत प्रिय थी। बच्चों को गाय के सींग
और गाय का मुँह बहुत प्यारा लगता था। एक दिन जब शाम को गाय जंगल से लौटी... गाय के दोनों सींग के ऊपर के भाग टूट गए थे, और मुँह के ऊपर तीन-चार घाव हो गए थे। गाय को देखकर घर के सभी लोग दुःखी हुए। उपचार करवाए । गाय अच्छी हो गई, परंतु टूटे हुए सींग तो टूटे हुए ही रह गए | बच्चों का प्रेम नहीं रहा। एक दिन गाय बेच दी गई।
चेतन, शुभ-अशुभ नामकर्म की वजह से शरीर शुभ-अशुभ लगते हैं। वैसे आत्मा को इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है। परंतु जब तक आत्मा शरीरधारी है तब तक 'शुभ-अशुभ' का आरोप आत्मा पर जाता है। कर्मों की वजह से आत्मा को बहुत कुछ सहना पड़ता है। इसलिए कर्मों के बंधन तोड़ने का उपदेश तीर्थंकरों ने दिया है।
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