________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चेतन, तेरा दूसरा प्रश्न निम्न प्रकार है : "किसी की आवाज सुनने में अति प्रिय लगती है, किसी की आवाज अप्रिय लगती है, ऐसा क्यों होता है? किसी का स्वर स्वाभाविक ही मधुर एवं कर्णप्रिय होता है, किसी का स्वर कर्कश और अप्रिय होता है।'
चेतन, इसका भी कारण है। कारण के बिना कार्य नहीं होता है। कई स्त्री, पुरुष और पक्षी वगैरह की आवाज मधुर एवं कर्णप्रिय होती है, इसका कारण उन लोगों का ‘सुस्वर-नामकर्म' है। __ वैसे जिन लोगों की आवाज कर्कश एवं अप्रिय होती है, उस का कारण उन लोगों का 'दुःस्वर-नामकर्म' होता है। ___ मनुष्य के जीवन में, उसकी आवाज महत्त्वपूर्ण होती है। कई लोग अपनी आवाज के कारण प्रिय बनते हैं, कई लोग अपनी आवाज के कारण अप्रिय बनते हैं।
एक लड़के ने मुझे कहा : 'मैं बोलता हूँ, घर में किसी को पसंद नहीं आता है... सब के मुँह बिगड़ जाते हैं।'
उस लड़के की आवाज ही वैसी कर्कश थी, सुननेवालों को अप्रिय लगे वैसी ही थी। 'दुःस्वर' नामकर्म का उदय था उनका | मैंने ऐसे कुछ विद्वानों को देखे हैं, वे विद्वान हैं परंत दुःस्वर नामकर्म के उदय से उनकी आवाज कर्कश है, श्रवणमधुर नहीं है, इसलिए लोग उनके प्रवचन नहीं सुनते।
कई ऐसे अच्छे कलाकार हैं, परंतु आवाज कर्कश और श्रवण मधुर नहीं होने से सफलता के शिखर पर नहीं पहुंच पाए हैं। वैसे ही जो लोग रूपवान नहीं है, शरीर का कोई अवयव क्षतिग्रस्त भी है, परंतु सुस्वर-नामकर्म का उदय होने से, उन की आवाज मधुर एवं श्रवणमधुर है, तो वे लोग बहुत लोकप्रिय बने हैं। उन्नति के शिखर पर पहुंचे हैं।
जीवन-व्यवहार में भी मधुर-मनोरम आवाज का बड़ा प्रभाव होता है। लोकप्रियता में आवाज का बड़ा योगदान होता है। परंतु जो कर्म लेकर जीव आया होता है, उसी के अनुसार उसकी आवाज होती है। 'दुःस्वर नामकर्म' लेकर आया है तो उसकी आवाज दूसरों को अप्रिय लगेगी। खेद नहीं करना। सुस्वर-नामकर्म लेकर आया है तो उसकी आवाज दूसरों को प्रिय लगेगी। अभिमान नहीं करना। यह कर्मों का खेल है! बदलता रहता है।
- भद्रगुप्तसूरि २३६
For Private And Personal Use Only