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वैसे जब शरीर स्वस्थ-सुंदर और सुगठित होता है तब भी ज्ञानी पुरुष सोचता है - 'इस समय मेरा शरीर स्वस्थ है, सुदृढ़ और सौष्ठवयुक्त है, इसका मूल कारण 'कर्म' ही हैं। मुझे कर्मों के ऊपर विश्वास नहीं करना चाहिए | ये कर्म कभी भी धोखा दे सकते हैं। कर्मों ने कई बड़े बड़े लोगों को भी धोखा दिया है। मुझे कर्मों के दिए हुए सुखों पर भरोसा नहीं करना है।'
चेतन, स्थिर नामकर्म और अस्थिर नामकर्म के विषय में चिंतन करना। शेष कुशल,
- भद्रगुप्तसूरि
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