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- कोई मनुष्य कहता है : मैं सो जाऊँ और मेरे सीने पर से कार निकल
जायं, तो भी मेरी हड्डी टूटती नहीं है। मेरे जबड़े पर कोई मुक्केबाज मुष्ठि प्रहार करे, मेरी एक भी हड्डी टूटती नहीं है। यह स्थिर नामकर्म
का प्रभाव है। - कोई मनुष्य कहता है : आज मुझे ८० साल हुए, परंतु मेरे ३२ दाँत
सलामत हैं। एक भी दाँत गिरा नहीं है! यह चमत्कार इस स्थिर नामकर्म
का है। - कोई मनुष्य कहता है : 'मैं पाँचवीं मंजिल पर से गिरा था, परंतु मेरी एक
भी हड्डी टूटी नहीं थी!' यह प्रभाव स्थिर नामकर्म का है। वैसे जिस मनुष्य का स्थिर नामकर्म कमजोर होता है - - उसके दाँत सामान्य आघात से टूट जाते हैं, - उसकी हड्डी सामान्य प्रहार से टूट जाती है।
कोई मनुष्य कहे कि - 'मेरे सभी दाँत २२ साल की आयु में गिर गए! यह कमजोर स्थिर नामकर्म की वजह से हुआ। - कोई मनुष्य कहे : ‘रास्ते चलते मुझे ठोकर लगी, मैं जमीन पर गिर पड़ा...
और मेरे पाँव की हड्डी टूट गई! यह कमजोर स्थिर-नामकर्म का काम
अब दूसरी बात बताता हूँ। - शरीर के जो जिह्वा (जीभ) वगैरह अवयव अस्थिर हैं, यानी जैसे मोड़ने
चाहें, मोड़ सकते हैं, जो लचीले होते हैं - इन अवयवों का नियामक भी एक कर्म होता है! उसका नाम है अस्थिर-नामकर्म | - जीभ कड़ी-सख्त क्यों नहीं हो जाती? - कान कड़े-सख्त क्यों नहीं हो जाते? - होंठ कड़े सख्त क्यों नहीं हो जाते? - पलकें स्थिर-सख्त क्यों नहीं हो जाती? इसका कारण यह अस्थिर-नामकर्म है। वैसे तो पुद्गल-द्रव्य में स्थिरता और अस्थिरता की-दोनों शक्ति होती हैं।
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