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सातवाँ प्रकार है तृण : दूर्वा, दर्भ, एरंड, वगैरह 'तृण' कहलाते हैं।
आठवाँ प्रकार है वलय : सुपारी, खजूर, नारियल वगैरह का समावेश 'वलय' में होता हैं।
नौवाँ प्रकार है हरितक : सरसों, चौलाई, वगैरह 'हरितक' है।
दसवाँ प्रकार है औषधियाँ : पके हुए सभी धान्य औषधि हैं। उसके २४ प्रकार बताए गए हैं।
ग्यारहवाँ प्रकार है जलरूह : जो पानी में पैदा होता है। जैसे कि कदंब, कमल... वगैरह।
बारहवाँ प्रकार हैं कुहण। यह एक अनजान वनस्पति की जाति है।
- वृक्ष वगैरह में असंख्य जीव होते हैं। गुच्छ वगैरह में प्रायः संख्यात जीव होते हैं।
चेतन, 'प्रत्येक-नामकर्म' के उदय से उत्पन्न होनेवाले प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में संक्षेप में बताया।
अब मैं 'साधारण-नामकर्म' के उदय से उत्पन्न होनेवाले साधारण- वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में कुछ बातें बताता हूँ।
- साधारण-वनस्पतिकाय, के जीवों को अनंतकाय के जीव भी कहते हैं। इन जीवों के शरीर, श्वासोच्छवास, और आहार साधारण होता है, सब का एक ही होता है, इसलिए ये जीव साधारण-वनस्पति के जीव कहे जाते हैं। ____ - मूल, कंद, स्कंध... फल आदि १० वस्तुओं को तोड़ने पर समरूप से टूटते हैं - यह अनंतकाय की निशानी हैं।
जिनके मूल, कंद, पत्र, फल, पुष्प और छाल को तोड़ते हुए चक्रकार समच्छेद होता हो, यह भी अनंतकाय समझना।
-- वनस्पति का पहला अंकुर प्रस्फुटित होता है, वह साधारण यानी अनंतकायिक होता है। बाद में वही अंकुर 'प्रत्येक' बन जाता हैं। ___- जिस वृक्ष के पत्र क्षीरवाले हो या बिना क्षीर के हो, जिन के रेशे गुप्त हो, दो पत्र के बीच संधि न दिखती हो... ये सारे पत्र अनंतकायिक हैं।
चेतन, अब तुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया न? जो वनस्पति अनंतकायिक है, जिस में अनंत जीव होते हैं, वैसी वनस्पति खाने का तीर्थंकरों ने निषेध
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