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पत्र : ६
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ।
पराघात-नामकर्म के विषय में तुझे स्पष्ट बोध मिला, जानकर मुझे संतोष हुआ | नामकर्म की अवांतर प्रकृतियों का अध्ययन करने से बहुत सी गहन-गंभीर बातें स्पष्ट होती जाएंगी।
तेरा नया प्रश्नः
'इस समय भारत में अथवा वर्तमान दुनिया के देशों में कहीं भी 'तीर्थंकर' नहीं है, परंतु सुना है कि 'महाविदेह' नाम का क्षेत्र है, वहाँ वर्तमान समय में तीर्थंकर हैं, तो कौन आत्मा तीर्थंकर बन सकती है? क्या तीर्थंकरत्व भी कर्म का प्रदान है?'
चेतन, आत्मा को तीर्थंकर बनानेवाली दो बातें हैं: १. वीश स्थानक तप की आराधना, और २. तीर्थंकर नामकर्म का उदय,
२० स्थानक तप की आराधना करने से तीर्थंकर नामकर्म बँध सकता है। संपूर्ण २० स्थानक का तप नहीं करें, १/२ पदों की भी सर्वांग सुंदर आराधना करने से तीर्थंकर नामकर्म बंध सकता है। परंतु तप करने वाले जीव के हृदय में संसार के सभी जीवों के प्रति भाव करुणा होनी चाहिए । 'मेरा चले तो मैं सभी जीवों को दुःखों से मुक्त करूँ और मुक्ति दिला दूँ।' ऐसा भाव होना चाहिए। चेतन, २० स्थानक के नाम बता दूं पहले -
१. अरिहंत २. सिद्ध ३. प्रवचन ४. आचार्य ५. स्थविर ६. उपाध्याय ७. साधु
८. ज्ञान
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