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हो सकता है। ऐसे लोग समाज का, नगर का, और देश का अहित करते हैं। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए यह पराघात' कर्म उनका मार्ग सरल बना देता है। देश के सर्वोच्च नेता से भी ऐसे लोग अपना कार्य करवा लेते हैं। बुरे काम करने पर भी उनको कोई रोकता नहीं है! कुछ जानते हैं कि 'यह काम अच्छा नहीं है...' फिर भी उसका विरोध नहीं कर सकते हैं। लोग उनसे उतने प्रभावित होते हैं कि बुरे काम को भी 'आपने अच्छा काम किया!' बोल देते हैं।
पराघात नामकर्म का उदय होने पर, उसकी गलत बात को भी लोग सही बात मान लेते हैं! 'पराघात' कर्म पर मनुष्य की सफलता का आधार है। इस नामकर्म के उदयवाला मनुष्य सफलता के शिखर पर पहुँच सकता है! परंतु पता नहीं लगता कि कब इस कर्म का उदयकाल समाप्त हो जाय। उदयकाल में उसकी सभा में हजारों-लाखों लोग, उसकी एक बात पर हाथ ऊँचा कर सहमति व्यक्त करते हैं, उदयकाल समाप्त होने पर... उसकी सभा में मुश्किल से १००/ २०० लोग आते हैं और वे भी उसकी बात मानने को तैयार नहीं होते!
चेतन, घर के मुख्य व्यक्ति में यदि 'पराघात' कर्म का उदय होता है तो घर में शिस्त और शांति रहती है।
समाज का नेता यदि इस कर्म का उदयवाला होता है, तो समाज में
शांति रहती है और यदि नेता धार्मिक होता हैं, सदाचारी और सही रास्ते पर चलनेवाला होता है तो समाज को ऊँचा उठाता है, सही दिशा में समाज को ले जाता है।
दुनिया में जितने भी ‘सरमुखत्यार' (डिक्टेटर) हुए, उन सब का ‘पराघात नामकर्म' प्रमुख था। तभी वे देश को अपनी बात मनवा सकते थे, मनमानी करवा सकते थे।
तीर्थंकरों की आत्मा में, चक्रवर्ती वगैरह उत्तम पुरुषों की आत्मा में यह 'पराघात नामकर्म' उत्कृष्ट कोटि का होता है। तभी वे पूरे विश्व को अपनी बात समझाने में कामियाब रहते थे।
चेतन, अपनी बात दूसरों से मनवाने के लिए यह 'पराघात' नामकर्म का अपने में उदय होना चाहिए। यदि अपना पराघात नामकर्म प्रबल होता है तो दूसरे लोग-घर के या बाहर के, अपनी बात मान ही लेंगे। अपना प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा ही।
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