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थे! वैसे अच्छे कार्यों के लिए उन्होंने चार/पाँच करोड़ रुपये इकट्ठे करवाए होंगे। स्वयं इतने निःस्पृही थे कि उस दान में से एक रुपया भी नहीं लेते
थे। उन का ‘पराघात' नामकर्म प्रबल था। बंबई में एक बड़े व्यापारी थे। धर्मस्थानों में वे ट्रस्टी थे। उनका स्वभाव अच्छा नहीं था । दूसरों का बात-बात में अपमान कर देते थे। बाजार में भी बड़ी सख्ताई से पेश आते थे। उनके पीछे लोग उनकी कटु आलोचना करते थे। परंतु उन का 'पराघात' नामकर्म प्रबल था। जिस व्यक्ति से दूसरा कोई कार्यकर्ता ५०० रुपयों का दान भी नहीं प्राप्त कर सकते थे, उस व्यक्ति से यह महानुभाव पाँच हजार का दान ले आते थे। याचना नहीं करते थे। आज्ञा करते थे - 'इस कार्य में तुम्हें ५ हजार रुपये देने हैं! और सामनेवाला मना नहीं कर सकता था। तूर्त ही पाँच हजार रुपये दे देता था! उनके जाने के बाद... फिर चाहे वह दाता कटु आलोचना भी करता था।
जो धर्माचार्य किसी की नहीं सुनते थे, वे धर्माचार्य उन महानुभाव की बात शांति से सुनते थे, और वे जो कहे, धर्माचार्य को भी मानना पड़ता था।
उनके घर में भी उनकी बात कोई टाल सकता नहीं था। उनका प्रभाव और तेज उतना प्रबल था, कि उनके घर में रहते हुए कोई भी व्यक्ति ऊँची आवाज में बोल नहीं सकता था। बातें भी परस्पर धीमी आवाज में करते थे। ___ - एक व्यापारी पेढ़ी में मुनीम थे। पेढ़ी के मालिक सेठ भी उनसे प्रभावित थे। जो मुनीम कहे वह अंतिम बात रहती थी। बाजार के व्यापारी ___ मुनीम को सेठ कहते थे । व्यापारी उनको मान देते थे। उनके साथ कोई भी व्यक्ति नौकर के रूप में व्यवहार नहीं करते थे। मुनीम का पराघात नामकर्म प्रबल था। __ चेतन, जो सत्पुरुष होते हैं, चरित्रवंत पुरुष होते हैं, यदि उनको यह पराघात नामकर्म होता है तो समाज को और देश को अच्छा लाभ होता है | धर्माचार्यों में यदि यह कर्म प्रबल होता है तो वे धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। संघ-समाज उनकी बात टाल नहीं सकता हैं। वे जो कहें वह करने को तत्पर रहता है। __परंतु ऐसा कोई नियम नहीं है कि सत्पुरुषों को ही 'पराघात' कर्म उदय में आए! दुष्ट, दुराचारी और अधम लोगों को भी यह पराघात नाम कर्म का उदय
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