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पत्र:
प्रिय चेतन,
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ।
ज्योतिष-देवलोक के विषय में जो बातें मैंने लिखी हैं, वे तो बहुत कम हैं और संक्षिप्त हैं। 'बृहत्संग्रहणी' नाम के ग्रंथ में विस्तार से पढ़ने को मिल सकेंगी।
तेरा नया प्रश्नः 'मैंने कुछ ऐसे मनुष्य देखे हैं, जिनको देखते ही मैं प्रभावित हो गया। उनको मैं जानता भी नहीं था। वैसे एक मिल-मालिक को देखे थे, करोड़ों रुपये थे उनके पास, परंतु उनका व्यक्तित्व प्रभावक नहीं था, सामान्य मनुष्य जैसा ही था। कोई व्यक्ति ऐसे होते हैं कि उनकी बात तूर्त ही माननी पड़ती हैं और कोई व्यक्ति अनेक बार कहें, फिर भी उसकी बात दूसरे नहीं मानते! इसका क्या कारण? वर्तमान जीवन के साथ जुड़ी हुई यह बात है।'
चेतन, इसका कारण होता हैं मनुष्य का अपना-अपना 'पराघात' नामकर्म । जिस का परघात नामकर्म प्रबल होता है, उसको देखते ही लोग प्रभावित होते हैं और उसकी बात मान लेते हैं। जिस का यह कर्म निर्बल होता है, उसकी बात सच्ची और अच्छी होने पर भी लोग नहीं मानते। कुछ उदाहरणों से यह बात मैं तुझे समझाता हूँ। - एक हाईस्कूल में एक शिक्षक ऐसे थे, वे जिस क्लास में जाते, उस क्लास
के लड़के शांत हो जाते। किसी प्रकार की शरारत नहीं होती... किसी प्रकार की आवाज नहीं होती। जब कि दूसरे शिक्षक जब क्लास में जाते लड़के मस्ती करते, शिक्षकों की बातें नहीं सुनते, दूसरों
का उपहास करते। उस शिक्षक का पराघात कर्म प्रबल था, हाईस्कूल विद्यालय के आचार्य भी उनकी बात शांति से सुनते और शिक्षक जो
कहते, वह मानते! - एक कथाकार थे, कुछ ही बरस हुए उनकी मृत्यु हुई। उनकी वाणी इतनी प्रभावशाली थी कि उनके एक प्रवचन में लाखों रुपये लोग दान में दे देते
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