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पर आती हैं, वे किरणें सूर्य विमान की होती हैं, सूर्यलोक के देव-देवियों की किरणें नहीं होती हैं।
चन्द्र-तारा वगैरह के विषय में तेरी जिज्ञासा यथार्थ है। वे चमकते हैं अवश्य, परंतु जो चमके वह गरम हो, ऐसा नियम नहीं है। चन्द्र का प्रकाश शीतल होता है। 'उद्योत-नाम कर्म' की वजह से चन्द्रादि का प्रकाश शीतल होता है। ___ वैसे जुगनू, रत्न, हीरा, कुछ औषधि वगैरह के शरीर चमकते होते हैं, फिर भी उनकी गरमी नहीं लगती है, वह उद्योत-नामकर्म का प्रभाव होता है।
चेतन, जो लब्धिधारी मुनिवर-महात्मा होते हैं, वे विशेष प्रसंग में अपना वैक्रिय शरीर बनाते हैं, उस-और 'उत्तर वैक्रिय शरीर' जो देव बनाते हैं उस शरीर में भी प्रकाश होता है, शरीर चमकता है, वह भी 'उद्योत नाम कर्म' की वजह से होता है।
हाँ, देवों का वैसे ही वैक्रिय शरीर होता है, परंतु वे कभी शरीर को बड़ा बनाते हैं, कभी छोटा करते हैं, उस को 'उत्तर वैक्रिय' शरीर कहते हैं।
चेतन, जब ज्योतिष चक्र की बात तूने पूछी है तो उस विषय में विशेष जानकारी भी प्राप्त कर ले।
- ‘समभूतला' जमीन से ऊपर ७९० योजन (एक योजन-३२०० माईल) से ६०० योजन तक ११० योजन विस्तार में ज्योतिष-देवों के विमान हैं।
७९० योजन दूर तारा के विमान ७९० से १० योजन ऊपर सूर्य ८०० से ८० योजन ऊपर चन्द्र ८८० से ४ योजन ऊपर नक्षत्र ८८४ से ४ योजन ऊपर बुध का ग्रह ८८८ से ३ योजन ऊपर शुक्र का ग्रह ८९१ से ३ योजन ऊपर गुरु का ग्रह ८९४ से ३ योजन ऊपर मंगल का ग्रह ८९७ से ३ योजन ऊपर शनि का ग्रह - नक्षत्रों में सब से नीचे भरणी नक्षत्र चलता है, सब से ऊपर स्वाति नक्षत्र
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