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है, यानी उच्चता नीचता का निर्णय गोत्र कर्म द्वारा होता है, परंतु 'यह ब्राह्मण है, यह जैन-वणिक है, यह क्षत्रिय है, ऐसा परिचय करानेवाला जाति-नाम कर्म होता है।
- एकेंद्रिय से चउरिंद्रिय तक की जाति अशुभ है,
- पंचेंद्रिय में भी नारकी की जातियाँ, तिर्यंच की जातियाँ और कुछ मनुष्य की जातियाँ अशुभ मानी गई है। - देवगति में कुछ देवों की जाति अशुभ मानी गई है।
चेतन, शुभ जाति में जन्म पाने के लिए हमें मन-वचन-काया से शुभ प्रवृति करनी चाहिए। अपनी वर्तमान शुभ जाति का अभिमान नहीं करना और अशुभ जातिवालों की घृणा नहीं करना। यह महत्वपूर्ण बात है। देवों की उच्च जाति में जन्म हो, तो हमारी भौतिक उन्नति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति का भी अवकाश मिल सकता है। उच्च जाति में उत्पन्न जीवों को उत्तम धर्म की प्राप्ति सरलता से होती हैं।
चेतन, मनुष्यगति में, पंचेंद्रियजाति में, उच्च कुल में हमारा जन्म हो, जहाँ तीर्थंकर परमात्मा के दर्शन मिले, मोक्षमार्ग की प्राप्ति हो और उस मार्ग पर चलने की शक्ति एवं भावना प्राप्त हो, वैसी परमात्मा से प्रार्थना करना!
- भद्रगुप्तसूरि
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