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निर्णय जाति-नामकर्म से होता हैं। इस जाति-नामकर्म, 'यह जीव इस जाति का हैं,' ऐसी प्रसिद्धि करता हैं।
अब, पाँच प्रकार की जाति का सामान्य परिचय करा देता हूँ।
१. एकेंद्रिय जातिः जिन जीवों को एक ही स्पर्शेद्रिय होती हैं, उन जीवों को एकेंद्रिय जाति के कहे जाते हैं।
२. बेइंद्रिय जातिः जिन जीवों को स्पर्शेन्द्रिय और रसनेंद्रिय होती हैं, वे जीव बेइंद्रिय जाति के कहे जाते हैं।
३. तेइंद्रिय जातिः जिन जीवों को स्पर्शेद्रिय, रसनेंद्रिय और घ्राणेंद्रिय होती हैं, वे जीव तेइंद्रिय जातिके कहे जाते हैं।
४. चउरिंद्रिय जातिः जिन जीवों को ऊपर की तीन इंद्रियों के साथ चक्षुरिंद्रिय होती हैं, वे जीव चउरिंद्रिय जाति के कहे जाते हैं।
५. पंचेंद्रिय जातिः जिन जीवों को ऊपर की चार इंद्रियों के साथ श्रवणेंद्रिय होती हैं, वे जीव पंचेंद्रिय कहे जाते हैं।
- सभी देव और सभी नारकी के जीव पंचेंद्रिय ही होते हैं। ___- सभी मनुष्य भी पंचेंद्रिय होते हैं। पाँचों इंद्रियों के आकार तो होते ही हैं। कभी किसी जीव की श्रवणेंद्रिय काम नहीं करती हैं, किसी जीव की चक्षुरिंद्रिय काम नहीं करती हैं, फिर भी वह पंचेंद्रिय जीव ही कहलाएगा। इंद्रियों की कार्यक्षमता दर्शनावरण कर्म के चक्षु-दर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरण कर्म के माध्यम से होती हैं।
- तिर्यंच गति में पाँचों जाति के जीव होते हैं। एक-एक जाति में असंख्य अवांतर प्रकार के जीव होते हैं। जिस अवांतर जाति का नामकर्म बाँधता है जीव, उसी अवांतर जाति में जीव जन्मता है और उसी जाति से उस जीव का व्यवहार चलता हैं।
चेतन, अपना विशेष संबंध पंचेंद्रिय जाति से होता है। उसमें भी मनुष्य जाति से संबंध होता हैं। मनुष्य में भी ज्यादातर आर्य जाति के साथ संबंध होता है। आर्य जातियाँ भी अनेक प्रकार की होती हैं, उनमें कुछ पाँच-दस जाति के साथ अपना व्यवहार होता है। इस व्यवहार का नियामक जाति नाम कर्म होता है।
चेतन, भूल मत करना । उच्च जाति, नीच जाति का निर्णय ‘गोत्र कर्म' करता
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