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पत्र :
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ।
चार गति के विषय में तेरा अच्छा समाधान हो गया, जानकर संतोष हुआ। तेरा नया प्रश्न विषयानुकूल है। तेरा प्रश्न
'मनुष्य गति-नामकर्म से जीव मनुष्य गति में जाता है, परंतु वह वणिक जाति में उत्पन्न होगा या ब्राह्मण जाति में उत्पन्न होगा? वह भारतीय जाति में उत्पन्न होगा अथवा अमेरिकन या योरोपीय जाति में उत्पन्न होगा? वह क्षत्रिय जाति में उत्पन्न होगा या क्षुद्र जाति में उत्पन्न होगा? जाति का निर्णय कैसे होता है। वह निर्णय कौन करता है?'
चेतन, जिस प्रकार 'गति' का निर्णय करनेवाला गति-नामकर्म हैं, वैसे जाति का निर्णय करनेवाला जाति-नामकर्म है। जिस समय गति और आयुष्य कर्म बँधते हैं, उस समय जाति नामकर्म भी बँध जाता है। गति के अवांतर विभाग होते हैं जाति के | जाति असंख्य होती हैं, परंतु सभी जातिओं का समावेश पाँच जाति में हो जाता हैं। पाँच जाति का समावेश 'नाम-कर्म' में हो जाता हैं। वे पाँच जाति के नाम निम्न प्रकार हैं
१. एकेंद्रिय जाति २. द्वींद्रियजाति ३. त्रींद्रिय जाति ४. चतुरिंद्रिय जाति ५. पंचेंद्रिय जाति।
इन पाँच प्रकार की जाति की भी अवांतर जातियाँ होती हैं। एकेंद्रिय जाति के अवांतर प्रकारों में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति हैं। इन पाँच प्रकार के भी अवांतर प्रकार होते हैं। किस अवांतर के भी अवांतर प्रकार में जीव को जन्म लेना होगा, यह निर्णय जाति-नामकर्म से ही होता हैं। मनुष्य जाति विशाल हैं। उसके लाखों अवांतर प्रकार हैं। किस जाति के मनुष्य बनना होगा, यह
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