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अपरिगृहिता (वेश्या जैसी) देवी के पास जाते हैं और उसके साथ कामक्रीड़ा करते हैं। देवलोक में ऐसी अपरिगृहिता देवियाँ लाखों की संख्या में होती है। ये देवियाँ सौधर्म और ईशान देवलोक में ही उत्पन्न होती हैं। वैसे वे सहस्रार देवलोक तक आती जाती रहती हैं।
चेतन, देवलोक का वर्णन बहुत विस्तृत हैं। बड़े-बड़े ग्रंथ हैं देवलोक के विषय में । कभी, जब समय मिले 'बृहत संग्रहणी' पढ़ना | चारों गति के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। वैसे 'लोक-प्रकाश' ग्रंथ भी पढ़ने योग्य हैं। ____ 'गति' का अर्थ यहाँ क्षेत्र विशेष करना है। गति का अर्थ 'चलना' नहीं करना
- देवों का क्षेत्र देवगति, - नारकों का क्षेत्र नर गति, - मनुष्य का क्षेत्र मनुष्यगति, और - तिर्यंचों का क्षेत्र तिर्यंचगति हैं। उस-उस गति में ले जानेवाला कर्म गति-नाम कर्म है।
चेतन, गति-नामकर्म जीव को एक गति में से दूसरी गति में ले जाता हैं, आत्मा स्वतः नहीं जाती!
- भद्रगुप्तसूरि
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