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पत्र:00
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला। आनंद,
अवधि-दर्शनावरण एवं केवल-दर्शनावरण कर्म के विषय में तूने लिखा सो ठीक है। हमारे वर्तमान जीवन के साथ उसका विशेष संबंध नहीं है चूँकि इस जीवन में न तो हमें अवधि-दर्शन होनेवाला है, नहीं केवल-दर्शन ।
तेरा प्रश्न है निद्रा के विषय में।
"मेरा एक मित्र है, उसकी निद्रा प्रगाढ़ है। उस को जगाने में बड़ी तकलीफ होती है। मित्र के भाई की निद्रा तो गजब है। वह चलते-चलते भी नींद लेता है। इस प्रकार की निद्रा का कोई कारण होगा? कारणरूप कोई कर्म होगा? समझाने की कृपा करें।
चेतन, है कारण। कर्म ही कारण है। 'दर्शनावरण' कर्म ही कारणभूत है। दर्शनावरण कर्म के पाँच अवांतर कर्म निद्रा से ही संबंधित है। उन कर्मों के नाम निम्न प्रकार है:
१. निद्रा २. निद्रा-निद्रा ३. प्रचला ४. प्रचला-प्रचला ५. थिणद्धि अब मैं प्रत्येक प्रकार समझाता हूँ, इससे तेरे प्रश्न का समाधान मिल जाएगा।
१. पहला प्रकार है निद्रा। इस कर्म के उदय से निद्रा आती है, परंतु प्रगाढ़ निद्रा नहीं। इस निद्रा के उदय वाले मनुष्य को सुखपूर्वक अल्प प्रयत्न से उठाया जा सकता है। एक आवाज़ लगाइए, वह उठ जाएगा। उसके शरीर को स्पर्श करें, तूर्त उठ जाएगा।
२. दूसरा प्रकार है 'निद्रा-निद्रा' का | तेरे मित्र को यह निद्रा का उदय होना चाहिए। इस ‘निद्रा-निद्रा-कर्म' का उदय होता है जिस मनुष्य को, उसको उठाने में, जगाने में बड़ी तकलीफ होती है। जोर-जोर से चिल्लाना पड़ता है। उसके शरीर को हिलाना पड़ता है, अथवा उस पर पानी की बुंदे डालनी पड़ती है। तब वह जागता है।
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