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- ज्ञानोपयोग को साकार उपयोग कहते हैं, - दर्शनोपयोग को अनाकार उपयोग कहते हैं।
ज्ञानशक्ति-चेतनाशक्ति सभी आत्माओं में समान होते हुए भी बोधव्यापारउपयोग समान नहीं होता है। इसलिए जीवों में उपयोग की विविधता देखी जाती है। यह विविधता, जीव के बाह्य आंतरिक कारणों की विविधता पर अवलंबित होती है।
बाह्य कारण-इंद्रियाँ, विषय, देश-काल वगैरह सभी जीवों को समान रूप से प्राप्त नहीं होते है।
आंतरिक कारण-कर्मों की विविधता प्रमुख है। इन कारणों की वजह से जीव भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न बोध-क्रिया करता है। बोध की विविधता का हम अनुभव करते हैं।
इस बोध-क्रिया का विभागीकरण आठ और चार विभागों में किया गया है। ज्ञान के आठ प्रकार और दर्शन के चार प्रकार | प्रस्तुत में 'दर्शन' विषय है, इसलिए उसी का वर्णन करता हूँ।
दर्शन के चार प्रकार-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन।
दर्शन के निर्विकल्प बोध कहते हैं। ज्ञान को सविकल्प बोध कहते हैं। अवधिज्ञान सविकल्प बोध है, अवधिदर्शन निर्विकल्प बोध है। केवलज्ञान सविकल्प बोध है, केवलदर्शन निर्विकल्प बोध है। चेतन, इस पत्र में चिंतन-मनन का विषय लिखा है, तू अवश्य चिंतनमनन करना, कुशल रहे
- भद्रगुप्तसूरि
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