________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पत्र :
चेतन,
धर्मलाभ, तेरा पत्र आए उसके पहले ही यह पत्र लिख रहा हूँ। क्योंकि जिस विषय का मनुष्य को अध्ययन ही नहीं होता, उस विषय में उसकी जिज्ञासा प्रायः पैदा नहीं होती है। आज इस पत्र में मैं जो बातें लिखने जा रहा हूँ, शायद इस विषय में तेरा अध्ययन नहीं है। इस विषय में शायद तूने सोचा भी नहीं होगा।
चेतन, बात है 'दर्शनावरण कर्म' के ही दो प्रकार के कर्मों की - (१) अवधिदर्शनावरण कर्म और (२) केवलदर्शनावरण कर्म
तूने 'अवधिज्ञान' और 'केवलज्ञान' के विषय में पढ़ा भी होगा और सुना भी होगा। मैंने भी तुझे लिखा है इन दो ज्ञान के विषय में। परंतु अवधिदर्शन' एवं 'केवलदर्शन' के विषय में मैंने तुझे लिखा भी नहीं है और कभी सुनाया भी नहीं है। शायद इस विषय पर तूने प्रवचन भी सुना नहीं होगा। आज मैं तुझे इस विषय पर लिखता हूँ।
चेतन, वस्तु को विशेष रूप से जाननेवाला साकार बोध ज्ञान कहलाता है और वस्तु को सामान्य रूप से जाननेवाला निराकार बोध 'दर्शन' कहलाता है। अवधि का अनाकार बोध ‘अवधिदर्शन' है।
- वस्तु का विशेष बोध 'ज्ञान' है, - वस्तु का सामान्य बोध 'दर्शन' है, - छद्मस्थ मनुष्य को पहले दर्शन होता है, बाद में ज्ञान । - केवलज्ञानी महात्मा को पहले ज्ञान होता है, बाद में दर्शन । - अवधिज्ञानी को पहले अवधिदर्शन होता है बाद में अवधिज्ञान । - केवलज्ञानी को पहले केवलज्ञान होता है, बाद में केवलदर्शन । इन बातों को अब स्पष्टता से समझाता हूँ।
चेतन, इन दो दर्शनों का वास्तव में हमारे जीवन के साथ कोई संबंध नहीं है। न हमें अवधिदर्शन होनेवाला है, नहीं केवलदर्शन | अवधिज्ञानी को ही अवधिदर्शन होता है, केवलज्ञानी को ही केवल दर्शन होता है। न हम अवधिज्ञानी बनने की योग्यता रखते हैं,
१३९
For Private And Personal Use Only