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इन पाँच इंद्रियों को कोई क्षति होती है, कोई नुकसान होता है तो उसका कारण यह अचक्षु-दर्शनावरण कर्म होता है।
- अचक्षुदर्शनावरण कर्म के उदय से - मनुष्य बधिर बन सकता है, - मूक बन सकता है, - घ्राणशक्ति चली जा सकती है, - स्पर्श का अनुभव (सुखद) नहीं होता है, - मन पागल या अर्धपागल बन सकता है।
चेतन, मन को अस्वस्थ एवं विचारशून्य करनेवाला भी यह कर्म है। इसलिए, सर्वप्रथम यह कर्म नया नहीं बँधे, वैसी सावधानी बरतनी होगी।
यदि यह कर्म 'निकाचित' बँधा होगा तो औषध प्रयोग से अथवा मंत्रप्रयोग से इंद्रियाँ अच्छी नहीं हो सकेगी। कर्मबंधन निकाचित नहीं होगा और कोई औषध प्रयोग कर लिया, अथवा उचित मंत्रप्रयोग मिल गया, तो इंद्रियाँ अच्छी हो सकती
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चेतन, हमारे जीवन के साथ यह 'दर्शनावरण कर्म' प्रगाढ़ रूप से जुड़ा हुआ है न? पाँच इंद्रियाँ और मन, यही जीवन है। जीवन में से इंद्रियाँ और मन निकल जायं, तो क्या बचेगा? इसलिए इस दर्शनावरण कर्म को बाँधने से बचते रहें। जो बाँधकर आए हैं पूर्वजन्मों में, उसको तोड़ने का पुरुषार्थ करते रहें।
- आँखों की दर्शन-शक्ति का नाश करता है चक्षुदर्शनावरण कर्म। - शेष इंद्रियों की शक्ति का नाश करता है अचक्षुदर्शनावरण कर्म। - मन की विचारशक्ति को कुंठित करता है अचक्षुदर्शनावरण कर्म ।
अज्ञानदशा में मनुष्य कैसे-कैसे यह कर्म बाँधता है, उसके कुछ उदाहरण बताता हूँ
- बधिरों का उपहास करते हैं,
- जब कोई बात सुनता नहीं है तब आक्रोश करते हैं - बहरा है? सुनता नहीं?
- जब कोई मनुष्य रहस्य की बात सुन लेता है और बात करनेवाले को
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