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दूसरे जीवों की आँखें फोड़ डालने से,
• रोष में, क्रोध में, आवेश में आक्रोश करना
अंधा है क्या ? आँखें नहीं है क्या ?' वगैरह,
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- दूसरों की सुंदर आँखें देखकर ईर्ष्या करने से ....
- 'इसकी आँखें फूट जायं तो अच्छा है,' ऐसा सोचने से....
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- अंधे मनुष्यों का तिरस्कार करने से, उनको कटु शब्द कहने से...
- अंधजनों का परिहास करने से,
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- अंधजनों को सताने से, परेशान करने से,
सहायता करने की शक्ति होते हुए, अंधजनों को सहायता नहीं करने से, ‘चक्षुदर्शनावरण' कर्म बँधता है।
कान
नाक - जिह्वा
- स्पर्श, और
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चेतन, सोचने में, बोलने में और व्यवहार में सावधान रहना । वैसे जिसके अपने घर में अंधजन होता है, उस घरवालों को विशेष रूप से सावधान रहना पड़ता है। चूँकि अंधजन कभी-कभी छोटी-बड़ी भूल कर बैठता है, उस समय उसके प्रति आक्रोश नहीं करना है । सदैव उसके प्रति घर के लोगों के हृदय में करुणा एवं सहानुभूति का झरना बहता रहना चाहिए ।
अब मैं तेरे दूसरे प्रश्नों का समाधान लिखता हूँ।
वह बधिर क्यों बना?
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'क्या तेरी आँखें फूट गई हैं?
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वह मूक- गूँगा क्यों बना ?
चूँकि उन जीवों ने पूर्व जन्मों में "अचक्षुदर्शनावरण" नाम का दर्शनावरण कर्म बाँधा था। "अचक्षुदर्शनावरण" कर्म, दर्शनावरण कर्म का ही एक प्रकार है इस कर्म के अंतर्गत आँखों के अलावा
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- मन
इतनी इंद्रियों का समावेश होता है। इस पाँचों को 'अचक्षु' नाम दिया गया है।
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