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पत्र :
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरे पत्र में तेरे भावों की जो अभिव्यक्ति हुई है, चित्त को आह्लादित करनेवाली है। 'ज्ञानावरण कर्म' के बंधन से बचने का तेरा संकल्प सफल बनें, वैसी मेरी शुभ कामना है।
तेरा नया प्रश्नः
'गुरुदेव, एक दिन एक अंध पुरुष से मिलना हुआ। उसके प्रति मेरे हृदय में सहानुभूति पैदा हुई। कुछ बातें कर मैं वापस घर लौटा, परंतु मेरे मन में प्रश्न उठाः 'यह मनुष्य अंधा क्यों जन्मा होगा? इसके कारणरूप कोई कर्म होगा?' वैसे उसी दिन मैंने एक बधिर को देखा। उसके विषय में भी वैसा ही प्रश्न पैदा हुआ। यह मनुष्य बधिर क्यों है? क्या कारण?' उसी दिन एक मूक लड़का देखा। वह जन्म से बोलता नहीं था। डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कभी बोल नहीं सकेगा।' संसार में लाखो की तादाद में अंध, मूक और बधिर मनुष्य हैं... क्यों? रातभर सोचता रहा... प्रभात में उठ कर आप को पत्र लिख दिया...'
चेतन, कोई भी कार्य होता है, तो कारण से ही होता है। कार्य कारणभाव का सिद्धांत सर्वमान्य सिद्धांत है। तूने जिस मनुष्य को अंध देखा, उसकी आत्मा ने पूर्व जन्मों में 'चक्षु-दर्शनावरण' नाम का पाप-कर्म बाँधा होगा। 'दर्शनावरण' नाम के कर्म का यह एक प्रकार है | चक्षु-दर्शनावरण कर्म का प्रभाव है यह अंधापन ।
चक्षुदर्शन यानी आँखों से देखना । चक्षुदर्शन को रोकनेवाला जो कर्म है, उस कर्म को चक्षुदर्शनावरण कहते हैं। अंधापन का प्रमुख कारण यह
कर्म है। साधारण कारण दूसरे भी हो सकते हैं। बच्चा जब माता के पेट में होता है उस समय उसकी आँखों को, माता की लापरवाही से नुकसान हुआ हो और पेट में ही बच्चा अंधा हो गया हो। ऐसा होने का कारण भी यह 'चक्षुदर्शनावरण' कर्म को मानना पड़ेगा।
यह कर्म निम्न कारणों से बँधता है।
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