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ज्ञान, ज्ञानी एवं ज्ञान के साधनों की आशातना करने से ज्ञानावरण कर्म (पाँचों प्रकार के) जीव बाँधता है।
यदि ज्ञानावरण कर्म तोड़ना है, क्षयोपशम करना है, तो- ज्ञानिओं का विनय कर, उनकी सेवा कर, उनके चित्त को प्रसन्न कर, - गुरु से विनयपूर्वक अध्ययन कर, विवेक से प्रश्न कर, - प्रतिदिन नया-नया तत्त्वज्ञान प्राप्त कर, - जो ज्ञान पाया हो, भूल नहीं जाना, - उचित समय में अध्ययन करना, - ज्ञान एवं ज्ञानी की प्रशंसा करना, - ज्ञानी पुरुषों के गुणों का कीर्तन करना, - ज्ञान के साधनों का बहुमान से उपयोग करना, - निःस्वार्थ भाव से दूसरों को ज्ञान देना, - 'ज्ञानपद' की विशेष आराधना करना ।
चेतन, ज्ञानावरण कर्म का क्षय कर, तू एक दिन पूर्णज्ञानी बने, यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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