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- जिस गुरु से ज्ञान पाया हो (व्यवहारिक, धार्मिक या आध्यात्मिक) उस गुरु का नाम नहीं बताने से यानी मैंने यह ज्ञान उस गुरुदेव से पाया है, ऐसी बात नहीं कहते हुए, दूसरे कोई प्रसिद्ध गुरु का नाम देता है, तो ज्ञानावरण कर्म बाँधता है।
- जिस गुरु से ज्ञान पाया हो, उस गुरु ने कभी कोई प्रसंग में शिष्य को कठोर शब्द कहे हों, सजा की हो... इससे शिष्य के मन में गुरु के प्रति द्वेष पैदा हो गया हो और शिष्य गुरु की हत्या करने का सोचे... हत्या कर भी दे... तो ज्ञानावरण कर्म बँधता है। __- गुरु में जो दोष नहीं हों, उन दोषों का गुरु में आरोप कर, उनका अवर्णवाद बोलता रहे | गुरु में जो दोष देखे हों, उन दोषों को लोगों के सामने प्रकट करता रहे... तो ज्ञानावरण कर्म बँधता है।
ज्ञान के साधन-पुस्तक, पेन-पेन्सील, कागज वगैरह को - जमीन पर पटकने से, - जला देने से, - दुरुपयोग करने से, - गंदी जगह में डालने से, - उन पर गुस्सा करने से, ज्ञानावरण कर्म बँधता है। - खाते-खाते बोलने से एवं पुस्तक पढ़ने से, - संडास में बैठे-बैठे पुस्तक, पेपर वगैरह पढ़ने से, - किताब पर या पेपर पर बैठने से, - किताब को फाड़ डालने से, - ज्ञान के प्रति द्वेष, अप्रीति करने से, - ज्ञानावरण कर्म बँधता है।
चेतन, कभी कोई गुरुजन अथवा कल्याण मित्र ज्ञान पाने की प्रेरणा दें, उस समय ऐसा नहीं बोलना कि - 'मुझे पढ़ने में रस नहीं है, मुझे वैसी बातें सुनने में रुचि नहीं हैं... कोई उपयोग की बातें नहीं हैं वे... व्यर्थ समय गँवाना मैं पसंद नहीं करता...' वगैरह। ज्ञान के प्रति नफरत नहीं होनी चाहिए। ज्ञान प्राप्ति का समय नहीं मिलता हो तो अफसोस व्यक्त कर सकता है, परंतु नफरत नहीं।
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