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इस ज्ञान की तुलना में दूसरा कोई ज्ञान नहीं आता है,
- जिस प्रकार मतिज्ञान आदि ज्ञान के प्रकार होते हैं, वैसे इस ज्ञान के प्रकार नहीं होते हैं। यह एक और अखंड ज्ञान है,
- यह ज्ञान लोकालोक व्यापी होता है । इस ज्ञान में कोई भी अवरोध नहीं आ सकता है।
- यह ज्ञान प्रकट होने के बाद मतिज्ञान वगैरह चार ज्ञान, इसी ज्ञान में अंतर्भूत हो जाते हैं, उन ज्ञानों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता है। ___ - सभी सर्वज्ञों का केवलज्ञान समान होता है। किसी को ज्यादा, किसी को कम, ऐसा नहीं होता है। ___ - जिन महापुरुषों को केवलज्ञान प्रकट होता है, वे महापुरुष उसी भव में मुक्ति पा लेते हैं। उनको पुनः जन्म लेना नहीं पड़ता है।
- सभी सर्वज्ञ पुरुष, वीतराग होते हैं । वीतरागता और सर्वज्ञता में से पूर्णानंद प्रकट होता है, इसलिए वे पूर्णानंदी होते हैं।
चेतन, सर्वज्ञता पाने का सब से बड़ा लाभ यह है, पूर्णानंद का अनुभव | दूसरे कितने-कैसे भी ज्ञानी हों, परंतु पूर्णानंद की अनुभूति नहीं हो सकेगी। अल्पकालीन आनंद मिलेगा, थोड़ा सा आनंद मिलेगा, परंतु पूर्णानंद नहीं मिलेगा। पूर्णज्ञान ही पूर्णानंद का असाधारण कारण है। पूर्ण ज्ञान का असाधारण कारण वीतरागता है। इसलिए सर्वप्रथम 'वीतराग' बनने का संकल्प करना होगा। जब यह संकल्प करेगा, तू ‘विरागी' अवश्य बन जाएगा। वैराग्य गुण' आत्मा में स्वतः प्रकट होता है। जिस प्रकार वीतरागता आत्मा का मूलभूत गुण है वैसे वैराग्य भी आत्मा का ही गुण है।
चेतन, अब मैं तुझे 'ज्ञानावरण कर्म' जीव क्या-क्या करने से बाँधता है। यह बात बताऊँगा, जिससे तू सावधान हो सके और वैसी वृत्ति-प्रवृत्ति का त्याग कर सके। अज्ञानता की वजह से लोग ज्ञानावरण कर्म बाँधते हैं। उनको मालूम ही नहीं पड़ता है कि 'मैं ज्ञानावरण कर्म बाँध रहा हूँ... ऐसी प्रवृत्ति करने से।'
- ज्ञानी पुरुषों के साथ, गुरुजनों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने से, उनके प्रति मन में दुर्भाव रखने से, उनकी निंदा करने से, उनको नुकसान पहुँचाने से ज्ञानावरण कर्म बँधता है।
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