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प्रिय चेतन,
धर्मलाभ,
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पत्र : २५
तेरा जिज्ञासापूर्ण पत्र मिला, आनंद !
तेरा यह प्रश्न है:
‘मैंने साधु पुरुषों के मुख से सुना है कि कोई महात्मा भूतकाल में ऐसे होते थे, जो मनुष्य के एक... दो... पाँच... सात पूर्व जन्म बताते थे, भविष्य के जन्म के विषय में बताते थे... एवं वे दूर-दूर के जड़-चेतन पदार्थ भी जान सकते थे, देख सकते थे। वह कैसे संभव हो सकता है और क्या मात्र साधु पुरुष ही देख सकते हैं? गृहस्थ नहीं देख सकते क्या? कृपया मेरे इस प्रश्न का समाधान करें ।'
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चेतन, ज्ञान पाँच प्रकार के होते हैं: मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान एवं केवलज्ञान। ये पाँच ज्ञान दो विभाग में विभाजित हैं । मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष ज्ञान हैं एवं अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान तथा केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान हैं।
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- जिस ज्ञान में मन तथा इंद्रियों की सहायता अपेक्षित होती है वह ज्ञान परोक्ष ज्ञान कहलाता है।
- जिस ज्ञान में मन एवं इंद्रियों की सहायता आवश्यक नहीं रहती है, आत्मा स्वयं ज्ञान पाता है, वह ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जाता है।
जन्म-जन्मांतरों का ज्ञान, हजारों लाखों करोडों माईल दूर रहे हुए जड़चेतन पदार्थों का ज्ञान, प्रत्यक्ष ज्ञान अवधिज्ञान होता है।
- 'अवधि' का अर्थ है मर्यादा। इस प्रत्यक्ष ज्ञान की मर्यादा होती है। जैसे कोई अवधिज्ञानी एक हजार माईल दूर देख सकते हैं, कोई
अवधिज्ञानी एक लाख माईल तक दूर देख सकते हैं। वैसे कोई एक सो वर्ष का भूतकाल देख सकते हैं तो कोई एक हजार ... दो हजार ... वर्ष का भूतकाल देख सकते हैं । कोई स्थूल पदार्थ देख सकते हैं, तो कोई सूक्ष्म पदार्थ देख सकते हैं ।
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