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- इस प्रकार अवधिज्ञान के अनंत प्रकार होते हैं! हालाकि अनंत प्रकारों का वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं हैं, मैं तो इस ज्ञान के ६ प्रकारों का ही वर्णन कर पाऊँगा। वह वर्णन करने के पहले यह बता देना चाहता हूँ कि ज्ञान किस-किस को होता है और कैसे प्रगट होता है।
- सभी देवों को यह ज्ञान होता है। सम्यग्दृष्टि देवों को वह ज्ञान स्पष्ट और विशद होता है, मिथ्यादृष्टि देवों को अस्पष्ट एवं सामान्य होता है। देवों को जन्म से ही अवधिज्ञान होता हैं, उनको यह ज्ञान प्रगट करने का उपाय-पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता है।
- वैसे, नरक में सभी नारक जीवों का जन्म से ही यह ज्ञान होता है । नारक जीव भी सम्यग्दृष्टि एवं मिथ्यादृष्टि होते हैं।
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- पशु-पक्षी एवं मनुष्यों को अवधिज्ञान होता है, परंतु तपश्चर्या, क्षमा वगैरह गुणों के द्वारा होता है । पुरुषार्थजन्य होता है। आत्मा पर रहा हुआ ‘अवधिज्ञानावरण' कर्म का क्षयोपशम करना पड़ता है, तोड़ना पड़ता है उस कर्म को, तब अवधिज्ञान प्रगट होता है ।
चेतन, एक बात समझना कि 'अवधिज्ञान' से रूपी द्रव्य ही देखे जा सकते हैं, अरूपी द्रव्य नहीं । पुद्गल-द्रव्य ही रूपी है। आत्मद्रव्य, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं कालद्रव्य अरूपी द्रव्य हैं। समग्र पुद्गलास्तिकाय रूपी द्रव्य है, इसलिए अवधिज्ञानी उसको देख सकते हैं।
अब संक्षेप में तुझे 'अवधिज्ञान' के छः प्रकार बताता हूँ । छः प्रकार के नाम इस प्रकार हैं:
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१. अनुगामी
३. वर्धमान
४. यमान
६. अप्रतिपाति
अवधिज्ञानी जहाँ भी जाय, अवधिज्ञान उसके साथ ही रहता है, वह अनुगामी अवधिज्ञान कहा जाता है।
२. अननुगामी
५. प्रतिपाि
- मनुष्य को जिस जगह 'अवधिज्ञान' प्रगट हुआ हो, वहाँ ही वह ज्ञान होता है, मनुष्य दूसरी जगह जाता है तो वह ज्ञान उसको नहीं होता है। उस मनुष्य के साथ नहीं जाता है वह ज्ञान, उसको 'अननुगामी अवधिज्ञान' कहते हैं।
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