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ज्ञान (वास्तव में अज्ञान) हम को अज्ञानता के पास ले जा रहा है। हम जीते हैं, परंतु 'जीवन' खो दिया है। परिणाम स्वरूप जीवन का सच्चा आनंद हमने खो दिया है। इस ज्ञान से हमने हमारा विवेक खो दिया है। वर्तमान काल में जो ज्ञान पाया जाता है, वह अनंत सूचनाओं में और फरमानों में खो गया है। बीस-बीस शताब्दि व्यतीत होने पर भी हम परमात्मा से दूर-सुदूर पहुँचे हैं... धूल के निकट!'
यह आक्रोश मिथ्याज्ञान के प्रति है। भौतिक विज्ञान के प्रति है।
हमें सम्यग् ज्ञान पाना है। इसलिए ज्ञानावरण कर्म को तोड़ने का पुरुषार्थ करना है। इसलिए ज्ञानी पुरुषों का परिचय करना है। ज्ञानी पुरुषों से ज्ञान प्राप्त करने में थकना नहीं है, निराश नहीं होना है। आराम और सुखशीलता को छोड़ना है। A seeker of knowledge must sacrifice his happiness.
इसी प्रकार पुरुषार्थ करने से कर्म के बंधन टूटेंगे। अवश्य टूटेंगे।
चेतन, शास्त्रज्ञान के माध्यम से आत्मज्ञान पाना है। आत्मतत्त्व को जानना है और आत्मानंद की अनुभूति करना है। आत्मानंद ही वास्तव में ज्ञानानंद है। - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान, ये दो ज्ञान परोक्ष हैं। इंद्रिय और मन के माध्यम
से ये दो ज्ञान पाए जाते हैं। - अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान-ये तीन ज्ञान प्रत्यक्ष हैं। इन
ज्ञानों में मन और इंद्रियों की अपेक्षा नहीं रहती है। इन ज्ञानों पर भी आवरण हैं! आवरण टूटने से, नष्ट होने से ये ज्ञान प्रगट होते हैं। इस विषय में आगे लिखूगा। तू स्वस्थ होगा। शेष कुशल,
- भद्रगुप्तसूरि
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