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पत्र : २०
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद। मेरे पत्र के अनुसंधान में तेरा प्रश्न है:
"ऐसे मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण कर्म, क्या-क्या करने से बंधता है? कृपा कर बताइए, ताकि वैसी दुःखदायिनी प्रवृत्तियाँ मैं छोड़ सकूँ।'
चेतन, अज्ञानतावश जीव कैसी-कैसी प्रवृत्ति करता है... और कैसे-कैसे पापकर्म बाँधता रहता है उस जीव को मालूम नहीं होता है। ये दो कर्म जीव क्याक्या करने से बाँधता है, बताता हूँ। - ज्ञानी पुरुषों के साथ अभद्र व्यवहार करने से, उनको पैर लगाने से, उन
पर थूकने से, उनकी निंदा करने से उनके शरीर को क्षतिग्रस्त करने से
ये दो कर्म बंधते है। - ज्ञान के उपकरण-पुस्तक, पेन, नोट, स्लेट वगैरह क्रोध से या लोभ से जलाने से, उन पर थूकने से, उनको पटकने से, बगल में दबोचने से,
उनको बाहर फेंकने से ये दो ज्ञानावरण कर्म बँधते है। - पुस्तक, अख़बार.. वगैरह को बाथरूम में ले जाने से, संडास में ले जा कर
पढ़ने से ये दो कर्म बँधते है। - कोई व्यक्ति एकाग्रता से अध्ययन करता हो, उस में विक्षेप कर, अध्ययन
में रुकावटें पैदा करने से ये कर्म बँधते है। - ज्ञानी पुरुष की मज़ाक उड़ाने से, उनका उपहास करने से ये कर्म बँधते है। चेतन, सभी ज्ञानी पुरुषों का रूपवान होना संभव नहीं होता। कोई
ज्ञानी पुरुष का शरीर रूपवान न हो, शरीर के हाथ, पैर, पेट वगैरह छोटे-बड़े हों, चमड़ी का रंग काला हो... दाँत छोटे-बड़े हो...
उनको देख कर यदि मनुष्य हँसता है... मज़ाक करता है... तो ये दो कर्म बँध जाते है।
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