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चेतन, मिथ्यात्व मोहनीय का और श्रुतज्ञानावरण कर्म का-दोनों का उदय एक व्यक्ति में होता है... तब उस व्यक्ति का जीवन, मोह और अज्ञान से अंधकारमय हो जाता है। यदि मतिज्ञानावरण कर्म का भी उदय होता है साथ में, तो वह अति मूढ हो जाता है। ऐसे व्यक्ति भी होते हैं इस दुनिया में। जब ऐसे व्यक्तियों को देखता हूँ तब कर्मों की क्रूरता पर तिरस्कार पैदा होता है।
परंतु सही बात तो यह है कि जीवात्मा को वैसे कर्म बाँधने ही नहीं चाहिए। 'मैं ऐसी प्रवृत्ति करूँगा तो श्रुतज्ञानावरण कर्म बँधेगा,' ऐसी समझ भी तो नहीं चाहिए न? मिथ्यात्व ऐसी समझ पैदा नहीं होने देता है। बड़ी करुणता है जीवों की। चेतन, तू पुण्यशाली है... तुझे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई है, इसलिए ये बातें तू समझ पाता है। स्वस्थ रहे, यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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