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-- एक गुरु के अनेक शिष्य थे। गुरु स्वयं शिष्यों को पढ़ाते थे। जो शिष्य अच्छी पढ़ाई करते थे उनकी प्रशंसा करते रहते और जो शिष्य अच्छी पढ़ाई नहीं कर पाते, उनकी निंदा करते, तिरस्कार करते । परिणाम यह आया कि, जो शिष्य पढ़ाई नहीं कर पाते थे, वे गुरु को छोड़कर अन्यत्र चले गए। गुरु ने श्रुतज्ञानावरण कर्म के माध्यम से नहीं सोचा।
- एक लड़की कोलेज के अंतिम वर्ष में पढ़ती थी। पढ़ती थी मन लगा कर, फिर भी तीन बार अनुत्तीर्ण हो गई। माता-पिता हमेशा उस का तिरस्कार करते...निंदा करते... भटकती रहती है... पढ़ाई नहीं करती है... मूर्ख है... तीन तीन बार 'फेल'- अनुत्तीर्ण हो गई... कोई लड़का तुझे पसंद नहीं करेगा...' वगैरह बोलते रहते। लड़की हीनभावना से भर गई। यदि माता-पिता, कर्म के सिद्धांत से अपने मन का समाधान करते तो यह नौबत नहीं आती। __पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए, परंतु प्रेम से, वात्सल्य से देनी चाहिए। जिसके मन में समाधान होता है, वे लोग कभी आक्रोश नहीं करते हैं। वे शांति से, समता से प्रेरणा देते हैं। जिनको मानसिक समाधान नहीं होता है, वे बात-बात में आक्रोश करते हैं और वातावरण को क्लेशमय करते हैं | समाधान करते चलो - - 'यह लड़का बहुत अच्छा पढ़ता है, चूंकि इसका श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम
अच्छा है।' - 'यह लड़का अच्छी पढ़ाई नहीं कर पाता है, पढ़ाई करने पर भी परीक्षा में पास-उत्तीर्ण नहीं होता है...। इसका श्रुतज्ञानावरण कर्म का उदय है।
क्या करे बेचारा?' - 'यह लड़का धार्मिक ज्ञान पाता ही नहीं है, दुनियाभर की किताबें पढ़ता है, परंतु अपने जैन धर्म की किताब नहीं पढ़ता है... | क्या करें? समझाते हैं
उसको, फिर भी नहीं पढ़ता है। उसके श्रुतज्ञानावरण कर्म का उदय है।' - 'इस छोटे मुन्ने को अच्छी स्कूल में 'डोनेशन' देकर भर्ती करवाया है, परंतु
अभी उसको 'अ से ह' तक बाराखड़ी या मूलाक्षर भी नहीं आती हैं... बेचारे का श्रुतज्ञानावरण कर्म का कैसा उदय है?'
यदि चेतन, इस प्रकार समाधान करने लगेगा तो तेरे मन में किसी के प्रति द्वेष और तिरस्कार नहीं पैदा होगा । तू उपाय सोचेगा इस कर्म का क्षयोपशम करने का । तू उपचार करेगा, इस कर्म के उदय से व्यथित व्यक्ति का।
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