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क्षयोपशम था।
चेतन, वर्तमान काल में मैं ऐसे मुनिवरों को जानता हूँ कि जो दिनभर पढ़ने की महेनत करते हैं, फिर भी पूरा एक श्लोक याद नहीं कर पाते हैं। जब कि ऐसे मुनि भी हैं जो दिन में ३००/४०० श्लोक याद कर लेते हैं। कारण होता है श्रुतज्ञानावरण कर्म। किसी का प्रगाढ़ और किसी का मंद। ___- ज्ञान पाने के सभी अनुकूल संयोग होने पर भी, जो ज्ञान नहीं पाते, ज्ञान पाने की इच्छा ही जागृत नहीं होती है, इसका कारण यही कर्म है। ___ - एक विद्वान एक विषय को दो-तीन घंटे तक समझा सकता है, दूसरा विद्वान पूरा एक घंटा भी नहीं समझा सकता है। कारण यही श्रुतज्ञानावरण कर्म होता है।
चेतन, जो लोग इस कर्म को नहीं जानते हैं, नहीं समझते हैं, वे लोग कितनी गंभीर भूल करते हैं, एक-दो घटनाओं के द्वारा बताता हूँ।
- एक परिवार में दो बच्चे हैं। एक लड़का व एक लड़की है। दोनों स्कूल में पढ़ते हैं। लड़की होशियार है, अच्छी पढ़ाई करती है और अपनी कक्षा में प्रथम नंबर से पास होती है। लड़का भी पढ़ता है परंतु वह पहले नंबर से पास नहीं होता है, कभी-कभी फेल हो जाता है। माँ लडके को लड़की के सामने डाँटती है, उसका तिरस्कार करती है। लड़की की प्रशंसा करती है। स्नेही-स्वजनों के सामने भी यही बात करती है। ___ लड़का बहुत व्यथित हो गया। वह माता से दूर रहने लगा। दोस्तों के साथ बाहर फिरने लगा। दोस्तों के कारण व्यसनी बना...| 'मैं पढ़ता हूँ तो भी मम्मी मेरी प्रशंसा नहीं करती है... दिनभर 'तू पढ़ता नहीं है... तू पढ़ता
नहीं है...' बस, एक ही रट लगा रखती है... मुझे पढ़ना ही नहीं है... मम्मी की लड़की पढ़ती है न? वह भी अभिमानी बन गई है...।' ऐसे विचार करने लगा। उसकी ज़िंदगी कैसी बनेगी? ___ माता ने इस 'श्रुतज्ञानावरण कर्म' के माध्यम से लड़के के विषय में नहीं सोचा। लड़की का श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम अच्छा है, उसकी अपेक्षा लड़के का क्षयोपशम मंद है। होता है ऐसा, सभी का क्षयोपशम समान नहीं होता है। फिर भी लड़का, इस कर्म का क्षयोपशम कर सके, वैसा मार्गदर्शन उसको प्रेम से
देती रहूँ...।' ऐसा चिंतन वह नहीं कर पाई और उसने अपने लड़के को खो दिया।
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