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पर मिथ्यात्व-मोहनीय और मतिज्ञानावरण-दो कर्मों का प्रभाव है। वह नहीं समझेगी तेरी सच्ची भी बातें। __ - जिनोक्त-सर्वज्ञभाषित धर्म को समझने के लिए, मिथ्यात्व मोहनीय का क्षयोपशम जैसे अपेक्षित है, वैसे मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम भी अपेक्षित है। धर्म तत्त्व को समझने के लिए अच्छी बुद्धि चाहिए। ___ - मतिज्ञानावरण से मतिमूढ़ बना हुआ जीव, अपनी अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों का भेद नहीं समझ पाता है, प्रवृत्तियों के परिणामों का विचार नहीं कर पाता है... और अज्ञान के घोर अंधकार में भटकता रहता है।
चेतन, क्षेत्र भौतिक हो या आध्यात्मिक, कार्य संसार का हो या धर्म का, सर्वत्र 'बुद्धि' चाहिए। बुद्धि से ही मनुष्य यश पाता है, कार्य में सफलता पाता है। अभयकुमार, चाणक्य, बीरबल... वगैरह के नाम देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से क्यों लिखे गए? बुद्धि थी उनके पास | इसलिए ‘मतिज्ञानावरण कर्म' बाँधने की प्रवृत्तियाँ नहीं करना, तोड़ने का पुरुषार्थ करना। तू कुशल रहे, यह मंगल कामना ।
- भद्रगुप्तसूरि
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