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मतिज्ञानावरण कर्म का ऐसा क्षयोपशम होता है कि ऐसी बुद्धि प्राप्त होती है ।
इस कर्म का जब अति प्रगाढ़ उदय होता है तब
- प्रगाढ़ अंधकार में कुछ स्पर्श होने पर जीव को 'यह कुछ है,' ऐसा ज्ञान भी नहीं होता है। उसको मालूम नहीं होता है कि 'किस चीज़ का स्पर्श हुआ। वह एकाग्रता से निर्णय भी नहीं कर सकता है कि 'यह स्पर्श रस्सी का है, साँप का नहीं।'
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मान लें कि एकाग्रता से वह निर्णय कर सकता है, परंतु वह निर्णय को याद नहीं रख पाता है । अपने किए हुए निर्णय की स्मृति नहीं आती है । भूल जाता है।
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या तो वह वस्तु को जानता नहीं है, जानता है तो उस वस्तु के रूप, रंग मोटापन... वगैरह वैविध्य को नहीं जानता है । वह भी जानता है, तो याद नहीं रहता है... स्मृति नहीं रहती है।
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- वस्तु अथवा व्यक्ति की संख्या याद नहीं रहती है।
• वस्तु के प्रकार... विभाग वगैरह जान नहीं सकता है। जानता है तो याद नहीं रहता है।
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वस्तु को या व्यक्ति को शीघ्र जान नहीं पाता है । जानता है.... . तो
देरी से जान पाता है । जानने के बाद भूल जाता है।
- किसी हेतु से वह किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता है।
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कभी संदिग्ध अर्थ करता है... कभी असंदिग्ध अर्थ करता है... यदि मतिज्ञानावरण का कुछ क्षयोपशम होता है तो !
चेतन, किसी मंदबुद्धि मनुष्य को देखकर, जब वह तेरी बात नहीं समझता हो, उस पर क्रोध नहीं करना । सोचना कि 'इस बेचारे को मति ज्ञानावरण कर्म सता रहा है।'
जब तेरे लड़के को कोई बात नहीं आती है, बार-बार भूल जाता है, तब तू उसका तिरस्कार करता है न ? मत करना तिरस्कार | उस बच्चे का क्या दोष? मतिज्ञानावरण कर्म उस पर हावी है।
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• तेरी सच्ची और सही बात भी तेरी पत्नी नहीं समझती है, उसकी बुद्धि में नहीं उतरती है... तू उस पर कोपायमान हो जाता है न? मत करना कोप । उस
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