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ग्रहण नहीं कर सकता है।
जिस मनुष्य का मतिज्ञानावरण कर्म प्रबल और प्रगाढ़ होता है वह मनुष्य कष्टप्रद बड़े-बड़े कार्यों का भार वहन नहीं कर सकता है। धर्म-अर्थ और कामइस त्रिवर्ग का प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रों का सार नहीं ग्रहण कर सकता है। इहलोक और परलोक में सुखदायिनी बुद्धि उसके पास नहीं होती है ।
विवक्षित कार्य में नहीं लगा सकता है, मन लगाकर परमार्थ को नहीं जान सकता है। बौद्धिक कार्यों में सफलता नहीं पा सकता है और इसी वजह से वह विद्वानों में प्रशंसापात्र नहीं हो पाता है ।
अनुमान हेतु और दृष्टांत के द्वारा अर्थ को सिद्ध नहीं कर सकता है। अभ्युदय और निःश्रेयस रूप फल देनेवाली बुद्धि उसको प्राप्त नहीं होती है । नहीं वह भौतिक सुख पाता है, नहीं मोक्ष का सुख पाता है।
चेतन, मतिज्ञानावरण कर्म का उदय प्रबल होता है तो - बीज बुद्धि, पदानुसारिणी बुद्धि और कोष्ठ बुद्धि इन तीन बुद्धि का आविर्भाव नहीं हो पाता है। तीन प्रकार की उत्कृष्ट बुद्धि को संक्षेप में समझाता हूँ ।
बीज की भाँति विविध अर्थबोधरूप महावृक्ष को पैदा करनेवाली होती है बीज बुद्धि। गणधर भगवंतों में बीज बुद्धि होने से वे तीर्थंकर परमात्मा से केवल ‘त्रिपदी' (तीन पदः उपन्नेइवा, विगमेइवा, धुवेइवा) सुनकर, उसके आधार पर समग्र द्वादशांगी की रचना करते है। बीज बुद्धिवाले महापुरुषों
को अर्थप्रधान एक ही वाक्य मिलना चाहिए। उसके आधार पर उन्हें अनेक अर्थों का बोध हो जाता है।
- पदानुसारिणी बुद्धिवाले महापुरुष, गुरु के मुँह से एक सूत्र सुनते हैं, शेष अनेक पद उनकी बुद्धि से स्वयंभू प्रगट हो जाते है । अनेक पदों की स्फुरणा उन्हें सहज रूप से हो जाती है।
- कोष्ठ यानी कोठार, भण्डार, गोदाम । कोठार में रखे हुए अनाज की भाँति इस ‘कोष्ठ बुद्धि' वाले महापुरुष, जो सूत्रार्थ पढ़े हों, उसे वे दीर्घकाल तक सुरक्षित रख सकते हैं। वे भूलते नहीं । कोष्ठ बुद्धिवाले पुरुष का ज्ञान ज्यों का त्यों बना रहता है, बिगड़ता नहीं, नष्ट नहीं होता ।
चेतन, मतिज्ञान की ये अद्भुत बुद्धियाँ हैं । मतिज्ञानावरण कर्म, इन बुद्धियों के प्राकट्य में अवरोधरूप है । परंतु यह तो बड़ी बात है... बहुत कम मनुष्यों को
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