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कोई जीव वासना को परवश बनकर जीता है, कोई जीव वासना पर विजय पाने के लिए जीता है। ____ मैथुन की यह वासना, चार गतियों में सब से ज्यादा मनुष्य में होती है।। देवों
से भी ज्यादा । पशुओं से भी ज्यादा । इसलिए मनुष्य को अपनी मैथुन वासना पर संयम करना अति आवश्यक बताया गया है।
स्त्री और पुरुष, यदि उनका वीर्यांतराय कर्म का क्षयोपशम हो, उनका आत्मवीर्य उल्लसित हो, वे वेदोदय को निष्फल कर सकते हैं। यदि आत्मवीर्य पर्याप्त मात्रा में जागृत नहीं हुआ हो तो वेदोदय अपना प्रभाव बताएगा ही, संभोग करवाएगा ही।
चेतन, 'मोहनीय कर्म' को 'पाप कर्म' कहा गया है, परंतु एक अपेक्षा से हास्य मोहनीय, रति मोहनीय और पुरुष वेद-मोहनीय- ये तीन प्रकार 'पुण्य कर्म' कहे जा सकते हैं। चूँकि ये कर्म सुख का अनुभव करवाते हैं। ____ मोहनीय कर्म - चारित्र मोहनीय कर्म, जीव कैसे बाँधता है, यह बात आगे लिलूँगा। तू स्वस्थ रहे, यही मंगल कामना,
___ - भद्रगुप्तसूरि
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