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पत्र : "
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद! तेरा यह प्रश्न है: 'कषाय-मोहनीय कर्म और नोकषाय-मोहनीय कर्म, जीव कैसे बाँधता है? प्रत्यक्ष दृष्टिपथ में आनेवाले मनुष्य जीवन और पशु जीवन पर, इन कषायों का और नो-कषायों का पूर्ण प्रभाव देखता हूँ...। प्रत्येक जीवात्मा कषाय-परवश और नो-कषाय परवश क्यों हैं?'
चेतन, कर्म से कर्मबंध होता है!
कषाय मोहनीय से और नोकषाय-मोहनीय के उदय से ही कषाय मोहनीय कर्म बँधता है, नोकषाय मोहनीय कर्म बँधता है! मन जब कषाय विवश बनता है तब कषायमोहनीय बाँधता है, मन जब-जब नोकषायविवश बनता है तब नोकषायमोहनीय बाँधता है। यानी हास्य, रति, अरति, भय, शोक और जुगुप्सा को बाँधता है। परंतु तीन वेद बाँधता है विषयों की विवशता से । शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श ये पाँच विषय हैं पाँच इंद्रियों के । इन विषयों में आसक्त मन वेद-नोकषायों को बाँधता है।
- जब-जब मन क्रोधी बनता है। कषायमोहनीय कर्म बंधता है, - जब-जब मन अभिमानी बनता है, कषायमोहनीय कर्म बंधता है, - जब-जब मन मायावी बनता है, कषाय मोहनीय कर्म बंधता है, और - जब-जब मन लोभी बनता है, कषाय मोहनीय कर्म बंधता है।
हालाँकि दूसरे-दूसरे पाप कर्म भी बंधते हैं, परन्तु मुख्य रूप से यह कषाय मोहनीय बंधता है। इसका तात्पर्य यह है कि कषायों के उदय से
कषायों का बंध होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो राग और द्वेष से कषायमोहनीय बंधता है। क्रोध और मान, द्वेष के दो रूप हैं, माया और लाभ, राग के दो रूप हैं। आत्मा के लिए सबसे ज्यादा खतरा इस राग और द्वेष से होता है। यह बात
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