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पत्र : 0
प्रिय चेतन,
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद! तेरा प्रश्न है: 'कोई मनुष्य हँसता है, कोई रोता है। कोई मनुष्य खुश रहता है, कोई नाखुश। कोई मनुष्य भयाकुल रहता है... कोई निर्भय। कोई मनुष्य कुत्सित वस्तु देखकर नाक-भौं सिकुड़ता है... कोई स्वस्थ....| गुरुदेव, ये सारे मनोगत भाव सहज हैं या कर्मप्रेरित हैं?' __ चेतन, ये सारे भाव कर्मप्रेरित हैं। मोहनीय कर्म से प्रेरित हैं। चारित्रमोहनीय कर्म के दो प्रकार बताए गए हैं - कषाय और नोकषाय | ये सारे मनोगत भाव, 'नोकषाय' कर्म से प्रेरित हैं।
'नो-कषाय' में 'नो' शब्द साहचर्यवाची है। कषाय के जो सहचर होते हैं, वे नो-कषाय कहलाते हैं। क्रोधादि कषायों के साथ ये नोकषाय उदय में आते हैं। कषायों के विपाक जैसा ही विपाक ये नोकषाय बताते हैं। अथवा ऐसा भी कह सकते हैं कि कषायों के उद्दीपन से नो-कषाय पैदा होते हैं। ये नोकषाय नव हैं। इनके दो विभाग हैं: हास्य वगैरह ६, और तीन वेद । - चेतन, कुछ लोग किसी कारण से हँसते हैं, कुछ लोग बिना कारण ही हँसते हैं। कोई हास्यजनक बात सुनते हैं तो हँसी आ जाती है। कोई हास्यजनक दृश्य देखते हैं, तो हँसी आ जाती है। कोई हास्यजनक बात पढ़ने से भी मनुष्य हँसता है, वैसे, बिना कुछ हास्यजनक देखे, सुने और पढ़े... कोई कोई मनुष्य हँसता है! देखे हैं न ऐसे लोग? पागल कहलाते हैं ऐसे लोग | कारण से या बिना कारण मनुष्य हँसता है, उसका अदृश्य कारण होता है हास्य-मोहनीय कर्म । बिना कारण कोई कार्य होता ही नहीं है। दृश्य कारण हो या मत हो,
अदृश्य कारण 'कर्म' होता ही है। - चेतन, जैसे 'हास्य' नाम का नो-कषाय है, वैसे ‘रति' नामका दूसरा नो
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