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सम्यग्दृष्टि नारक मनुष्यगति पाता है,
सम्यग्दृष्टि पशु-पक्षी देवगति पाते हैं!
इसलिए किस दृष्टि से कौन सी बात कही गई है - यह समझना बहुत ही आवश्यक है। नयों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । 'नय' अनेक बताये गए हैं -
- निश्चय नय और व्यवहार नय,
-
दृव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय,
ज्ञाननय,
क्रियानय...
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- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ़ और एवंभूत
- नयदृष्टि से हर शास्त्रवचन को समझना चाहिए ।
जिनवचन नयगर्भित होते हैं।
चेतन, कषायों के विषय में भी नय दृष्टि से सोचना - समझना ही आवश्यक है ! तू नयवाद का अध्ययन करना । यदि संक्षेप में नयवाद को पढ़ना हो तो मैंने ‘ज्ञानसार-विवेचन' के परिशिष्ट में नयवाद को लिखा है, नयवाद को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। एक बार पढ़ना ।
चार कषायों के विषय में लिखा है इस पत्र में। अब नो - कषायों के विषय में लिखूँगा ।
तू स्वस्थ रहे - यही मंगल कामना,
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भद्रगुप्तसूरि