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लोभ नहीं जाता है!
इन उपमाओं से कषायों की अति मंदता, तीव्रता और तीव्रतरता का खयाल आ जाता है। परंतु जीवों की अपेक्षा से जो बातें कहीं गई हैं, वे व्यवहारदृष्टि से समझना। कभी मिथ्यादृष्टि जीव के मिथ्या आग्रह शीघ्र दूर हो जाते दिखाई देते हैं... तो कभी समकित दृष्टि जीव के कदाग्रह, लाख उपाय करने पर भी दूर नहीं होते हैं। मिथ्यादृष्टि का अभिमान, कभी-कभी शीघ्र दूर हो जाता है, समकित दृष्टि का नहीं!
भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत और बाहुबली के बीच भयानक युद्ध हुआ था... युद्धभूमि पर ही बाहुबली विरक्त बने थे। साधु बन गए थे। परंतु उनको मालूम था कि उनके ९८ भाई, उनके पहले ही साधु बन गए थे। साधु बने हुए बाहुबली ने सोचाः 'अभी मैं भगवान ऋषभदेव के पास जाऊँगा, तो मुझे मेरे छोटे ९८ भाइयों को वंदन करना पड़ेगा। परंतु यदि मैं केवलज्ञानी बनकर जाऊँगा तो मुझे छोटे भाईयों को वंदन नहीं करना पड़ेगा। चूंकि सर्वज्ञ पुरुष किसी को वंदन नहीं करते हैं! मैं सर्वज्ञ बन कर जाऊँगा भगवान के पास ।' ___ वे युद्धभूमि पर खड़े रहे। 'मैं बड़ा भाई हूँ... मैं छोटे भाईयों को कैसे वंदना करूँ?' यह था उनका अभिमान | साधु को मान-कषाय 'संज्वलन' होता है। वह १५ दिन से ज्यादा नहीं टिकता है। परंतु बाहुबली मुनि को यह मान-कषाय एक वर्ष तक रहा था। तो क्या उन का मुनिपना चला गया था? नहीं, कषायों की कालमर्यादा व्यवहार दृष्टि से कही गई है।
- वैसे, जो कहा गया है कि 'अनन्तानुबंधी कषायवाले मिथ्यादृष्टि मर
कर नरक में उत्पन्न होते हैं, यह बात भी व्यवहार दृष्टि से कही गई है। कई मिथ्यादृष्टि जीव मर कर देवगति में जाते हैं!
प्रत्याख्यानावरण कषायवाले श्रावक/श्राविकायें देवगति में जा सकते हैं!
अप्रत्याख्यानावरण कषायवाले समकितदृष्टि जीव भी (मनुष्य) देवगति में जाते हैं और समकितदृष्टि देव, जिनको अप्रत्याख्यानावरण कषाय ही उदय में होते हैं, वे मनुष्यगति में भी उत्पन्न होते हैं!
- सम्यग्दृष्टि मनुष्य देवगति पाता है, - सम्यग्दृष्टि देव मनुष्यगति पाता है,
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