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कषाय है। किसी निमित्त को पाकर अथवा बिना निमित्त, जीव आंतरिक खुशी का, प्रमोद का अनुभव करता है - जिसका मूलभूत कारण है ‘रति' नाम का नो-कषाय | ज्यादातर लोग इष्ट की प्राप्ति होने पर, प्रिय की प्राप्ति होने पर प्रसन्न दिखाई देते हैं। अनिष्ट और अप्रिय का वियोग होने पर खुशमिज़ाज दिखाई देते हैं। कुछ लोग हर स्थिति में प्रसन्नचित्त रहते हैं! चित्तप्रमोद का प्रत्यक्ष कारण हो या नहीं हो, वे लोग आंतरिक प्रसन्नता
अनुभव करते रहते हैं। ‘रतिमोहनीय' कर्म का यह काम होता है! - कुछ लोग 'अरति' नाम के नो-कषाय से प्रभावित होते हैं। नाखुश होने का,
अप्रीति होने का कोई कारण हो या न हो, ये लोग प्रसन्नचित्त नहीं रह सकते। कैसी भी अच्छी बात हो, सुंदर वस्तु हो, प्रशस्त दृश्य हो या संयोग हो... ये लोग 'मूडलेस' आनंदरहित ही रहते हैं। उनके मुँह पर स्वाभाविक प्रसन्नता नहीं दिखाई देगी। 'अरति' नाम के नो-कषाय की
वजह से ऐसी स्थिति बनती है जीवात्मा की। - चेतन, कुछ लोगों को छाती पीटते, करुण क्रंदन करते... ज़मीन पर
लोटते, दीर्घ निःश्वास डालते नहीं देखे हैं क्या? देखे हैं न? वे लोग ऐसा क्यों करते हैं? शोकसागर में क्यों डूबते हैं? इसका कारण है 'शोक' नामका नो-कषाय | जब इस नो-कषाय का उदय होता है तब प्रगट कारण
हो या मत हो, जीवात्मा छाती पीटेगा, रुदन करेगा... आँसू बहायेगा। - एक भाई ने मुझे कहाः 'मुझे घर से बाहर जाने में भय लगता है। घर में
भी अकेला होता हूँ तब भय लगता है। क्या कारण होगा?' मैंने कहाः 'इसका मूल कारण है 'भय' नाम का नो-कषाय कर्म । इस कर्म का उदय होने पर, भय का निमित्त हो या मत हो, अपने ही विचारों से... कल्पनाओं से मनुष्य भयभीत होता है। भय के अनेक विचार आते हैं
और वह गभराता रहता है। 'मुझे कोई गोली मार देगा तो? मुझे लगता है सपने में... कोई मेरा गला दबोच रहा है....। डाकू आकर मेरा धन ले जायेंगे तो? मुझे अकेला छोड़कर सभी स्वजन चले जाएँगे तो? मेरे पुत्र का अकस्मात हो जाएगा तो? मुझे कैंसर का रोग हो जाएगा तो? मरकर मुझे नरक में जाना पड़ेगा तो?...' इस प्रकार की कल्पनाएँ पैदा होती हैं और जीव भयभीत बना रहता है।
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