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अभयकुमार का अपहरण
६६ 'तुम इन दगाबाजों की फिक्र मत करो...। ये जहन्नम में जाएं इनकी बला से! इनसे तो मैं बाद में निपट लूँगा।' सेनापति को बड़ा आश्चर्य हुआ, पर उसने चंडप्रद्योत की आज्ञा मान ली। कोई दलील या प्रतिवाद नहीं किया। चूंकि वह जानता था कि उसका राजा अत्यंत गुस्सैल स्वभाव का है...। यदि उसके सामने बहसबाजी करता तो राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचता! ___ चंडप्रद्योत रात्रि के समय अपने निजी पाँच घुड़सवार सैनिकों को लेकर उज्जयिनी की ओर रवाना हो गया। सबेरे-सबेरे सेनापति भी चुपचाप अपनी पूरी सेना के साथ राजगृही से मुँह मोड़कर उज्जयिनी की ओर चल दिया! चौदह राजा तो ठगे-ठगे से रह गये...| उनकी समझ में यह सब आ नहीं रहा था। वे भी आखिर हार कर अपनी-अपनी सेना के साथ अपने-अपने राज्यों को लौट आये।
अभयकुमार के गुप्तचरों ने अभयकुमार से कहा : 'महाराजकुमार, दुश्मन सभी दूम दबाकर भाग चुके हैं...। अब किले के दरवाजे खोल दें क्या?' _ 'खोल दो द्वार और नागरिकों से कह दो कि खुशी के इस मौके को जी भरकर मनाएँ।'
इस तरह अभयकुमार ने भयंकर युद्ध का खतरा टाल दिया।
राजा चंडप्रद्योत ने उज्जयिनी पहुँचने के कुछ दिनों पश्चात् चौदह राजा को उज्जयिनी आने का निमंत्रण भेजा। राजा लोग उज्जयिनी पहुँचे। खुले दिल से सारी बातें हुई। चंडप्रद्योत को तब अहसास हुआ कि 'किसी तरह अभयकुमार ने उसे मूर्ख बनाया है! मेरे ये बरसों के आज्ञांकित राजा, भला लाख सोनामुहरों की लालच में फँस जाएंगे क्या? यह मुमकिन नहीं! फिर भी अभयकुमार ने झूठी जालसाजी के सहारे मुझे धोखा दिया! मैं इसका बदला लूँगा!'
राजाओं को ससम्मान बिदाई दे दी।
रोजाना चंडप्रद्योत के दिल को यह घटना तीर की भाँति चुभती है... और वह बुलबुला उठता है : 'उसने झूठा भय दिखाकर मुझे भगाया...। मैं भी उसे धोखे में रखकर उसका अपहरण करवाकर यहाँ पकड़ मंगवाऊँगा!'
राजा ने एक दिन राजसभा में सवाल रखा :
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