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अभयकुमार का अपहरण
६७ ___ 'है कोई ऐसा बुद्धिशाली और कलाबाज आदमी मेरी इस राजसभा में, जो मगध के महामंत्री अभयकुमार को बाँधकर मेरे समक्ष हाजिर कर दे? मैं उसे मालामाल कर दूंगा!'
राजा की बात सुनकर सभी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे...। किसी की हिम्मत नहीं हुई... राजा की चुनौती को झेलने की!
लेकिन उस राजसभा में बैठी एक नृत्यांगना, जो कि अपने नाच-गान के द्वारा सभी का मनोरंजन करती थी... उसने खड़े होकर राजा से कहा : 'महाराजा, आप यदि इजाजत दें तो यह कार्य मैं करूँगी।' राजा ने खुश होकर कहा : 'बहुत बढ़िया! यह कार्य तू अवश्य कर | तुझे जितने रुपये वगैरह चाहिए... राज्य की ओर से दिये जाएंगे। तू निश्चित होकर यह कार्य कर।'
नृत्यांगना ने सोचा : 'अभयकुमार को रुपये-पैसे से ललचाया जा सके यह संभव नहीं है और रूप-सौन्दर्य का जादू भी उस पर तनिक भी असर करनेवाला नहीं! हाँ, एक रास्ता है, धर्म का सहारा लेकर अभयकुमार को फँसाया जा सकता है...| चूंकि धार्मिकता एवं धर्मीजन उसके लिए परम आदरणीय हैं। धार्मिक स्त्रीपुरुष की, साधर्मिकों की वह बहुत इज्जत करता है। मुझे श्राविका का स्वांग रचाना होगा। पर अकेले यह कार्य नहीं होगा ...। अभय अकेली श्राविक के सामने आँख उठाकर देखेगा तक नहीं! और दो-तीन चतुर औरतों को मेरे साथ मुझे ले जाना होगा।
उसने राजा से चाहिए जितने सोने के सिक्के ले लिये। दो चतुर स्त्रियों को सारी योजना समझाकर साथ लिया। और राजगृही की ओर प्रयाण कर दिया। योजना के मुताबिक राजा चंडप्रद्योत के पाँच चुनंदे योद्धा भी भेष बदलकर राजगृही में पहले से ही पहुँच चुके थे।
दो औरतों के साथ नृत्यांगना राजगृही में पहुँची | उसने नगर के बाहर एक उद्यान में छोटी पर सुन्दर कुटिर में रहने का निर्णय किया। माली और मालिन को कुछ सोने के सिक्के देकर खुश कर डाले। ___ मालिन के द्वारा उसने जानकारी प्राप्त कर ली... कि अभयकुमार रोजाना किस मंदिरजी में दर्शन व पूजन करने के लिए जाते हैं! मालिन तो पूरे राजगृही का हिसाब-किताब रखनेवाली थी!
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