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अभयकुमार का अपहरण
६५ पूजनीय हो। इस दृष्टि से केवल आपके हित की खातिर, निःस्वार्थ भावना से मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आपके साथ आये हुए चौदह राजाओं को मेरे पिता और मगध सम्राट श्रेणिक ने, एक-एक लाख सोनामुहरें भेजकर अपने पक्ष में ले लिए हैं। वे राजा लोग आपको बंधनग्रस्त करके मगध सम्राट को सौंप देनेवाले हैं। मेरी बात पर पूरा भरोसा नहीं आता हो तो सभी राजाओं पड़ाव के इर्दगिर्द जमीन खुदवा कर खुद अपनी आँखों से सोनामुहरें देख लेना।
आपका
अभयकुमार अभयकुमार ने अपने अत्यंत निजी राजपुरुष के हाथों यह पत्र राजा चंडप्रद्योत को रुबरु भिजवा दिया। मागध राजपुरुष पत्र देकर किले में वापस लौट आया।
इधर पत्र पढ़ते ही राजा चंडप्रद्योत के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। वह चौंक उठा | चंडप्रद्योत ने तुरंत किसी को संदेह न हो इस ढंग से, एक के बाद एक राजा के पड़ाव के आसपास खुदवाया तो वाकई में लाख-लाख सोनामुहरें मिली!
चंडप्रद्योत मन ही मन अभयकुमार का उपकार मानने लगा। वह घबरा उठा। उसने सोचा : 'ये दगाबाज राजा लोग मुझ पर हमला करके बाँध लें, उससे पहले ही मैं यहाँ से खिसक जाऊँ! एक बार सही सलामत उज्जयिनी पहुँच जाऊँ... बाद में इन दगाबाज राजाओं की अक्ल ठिकाने लगा दूँगा...। पर अभी तो यहाँ से शीघ्र ही नौ दो ग्यारह होने में अक्लमंदी है।
चंडप्रद्योत ने चौदह राजाओं को अपने पास बुलाया और कहा : 'आज हमें युद्ध नहीं करना है...। युद्ध का प्रारंभ कल से करेंगे। आज सेना को आराम करके तैयार होने दो।'
राजा लोग निश्चिंत हो गये। अपने-अपने पड़ाव में लौट गये।
राजा चंडप्रद्योत ने अपने अत्यंत विश्वस्त सेनापति को बुलाकर कहा : 'देखो... यह युद्ध हमें नहीं करना है । मैं आज रात्रि में गुप्त रूप से उज्जयिनी के लिए रवाना हो रहा हूँ...। तुम कल सबेरे अपनी सेना के साथ उज्जयिनी की ओर प्रयाण कर देना...।' ‘पर ये चौदह राजा लोग...?'
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