________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्योत, जो सदा जलती रहेगी
६७
|| १२. ज्योत, जो सदा जलती रहेगी।
अरुणाभ नगर के स्त्री-पुरुष आश्चर्य, आशंका और प्रबल जिज्ञासा के भावों में डूब गये, जब कामगजेन्द्र और प्रियंगुमति अपने सैन्य के साथ रास्ते में से ही वापस लौट आये। सब यही जानते थे कि 'राजा कामगजेन्द्र उज्जयिनी की राजकुमारी के साथ शादी करने के लिये गये हैं।' जब बिना शादी किये रास्ते में से ही वापस लौटे तो आश्चर्य होना सहज था।
जिनमति भी आश्चर्य से चौंक उठी। वह तुरन्त कामगजेन्द्र के आवास में जा पहुँची। प्रियंगुमति भी वहीं पर बैठी थी। जिनमति ने कामगजेन्द्र के चरणों में नमन किया और प्रियंगुमति के पास आ बैठी। उनकी प्रश्नभरी आँखें कामगजेन्द्र के चेहरे पर जमी थी। प्रियंगुमति गौर से जिनमति के सामने देख रही थी। 'आपको कुशलता तो है न स्वामिन्?' 'बहुत प्रसन्न हूँ जिनु! कहो तुम कैसी हो?'
'आपकी कुशलता और आपकी प्रसन्नता वही मेरा सब कुछ है, आप प्रसन्न हैं तो मैं भी खुश हूँ!
'जिनु! जिन्दगी में कभी नहीं पायी ऐसी आंतरप्रसन्नता से मेरा रोम-रोम पुलकित है। वैषयिक सुखों के उपभोग में मुझे जो आनन्द न मिल सका वह आनन्द वह अपूर्व रसानुभूति मुझे श्री सीमंधर स्वामी के दर्शन एवं भगवान महावीर की देशना के श्रवण से मिली!'
‘पर सीमंधर स्वामी तो महाविदेह में हैं। उनके दर्शन? मेरी समझ में नहीं आ रहा कुछ...?' ___ कामगजेन्द्र के चेहरे पर दिव्य तेज की आभा चमक रही थी। जिनमति को उलझते देख उसके चेहरे पर स्मित की चाँदनी उतर आयी। उसने प्रियंगुमति को देखा। प्रियंगुमति ने हँसते हुए कहा : 'रात्रि की वह अद्भुत घटना आप ही जिनमति को सुनायें!'
कामगजेन्द्र ने जिनमति को अथ से इति तक सम्पूर्ण वृतांत कह सुनाया। साथ में भगवान महावीर के उपदेश से उसका हृदय विरक्त बना है और वह संयम की राह पर जाने को लालायित है, यह भी उसको बता दिया।
For Private And Personal Use Only