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ज्योत, जो सदा जलती रहेगी
'स्वामिन् सेनापति को बुलवाकर वापस लौटने की सूचना दे दें।' 'हाँ, प्रतिहारी भेजकर सेनापति को बुला लो।'
प्रियंगमति ने प्रतिहारी को सूचना दी। प्रतिहारी चला गया। प्रियंगुमति अपनी तैयारी में लग गई। सेनापति तुरन्त आ गया। कामगजेन्द्र ने उसको अरुणाभ नगर लौटने की सूचना दी। सेनापति के चेहरे पर आश्चर्य की रेखाएँ उभर आई। उसने मौन रहकर आज्ञा को स्वीकार किया। पर कामगजेन्द्र की आँखों ने उसकी जिज्ञासा को भाँप लिया। उसने कहा : __ 'हम स्वयं अपनी इच्छा से वापस लौट रहे हैं, अपने को कोई कष्ट या विध्न नहीं पहुंचा है। जो विशेष कारण है वापस लौटने का, वह अरुणाभ नगर जाने के बाद मालूम होगा।' कामगजेन्द्र के आनन पर स्मित के फूल खिल उठे। सेनापति ने शीघ्र पड़ाव उठवा लिया और सैन्य को अरुणाभ नगर की ओर लौटने का आदेश दिया।
सभी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे थे। चले थे उज्जयिनी की राजकुमारी को लेने के लिए और वापस लौट रहे हैं खाली हाथ! आखिर ऐसा क्यों?
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