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अनुभूत आश्चर्य
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था, पहुँचे। एक गुप्त गुफा में पहुँचकर जो कि रत्नों से आलोकित थी, मैंने कमलपत्रों की शय्या में सोई राजकुमारी को देखा ।'
कामगजेन्द्र रुका और उसने प्रियंगुमति की ओर देखा । प्रियंगुमति ने पूछा : 'वह विद्याधर कुमारी कैसी थी ?'
'उसके गले में कोमल फूलों का गुम्फित हार था, उसके शरीर पर चन्दन और कपूर का विलेपन किया हुआ था । केले के पत्रों से उसका उरभाग आच्छादित था। उसके रूप सौन्दर्य को शब्दों में बाँधना शक्य नहीं है।'
मेरे साथ की कुमारिकाओं ने उसको मंजुल शब्दों में जगाते हुए कहा : ‘प्रिय सखी, तू जाग और देख! तेरा प्रिय स्वजन तेरे सन्निकट है । तेरे समीप खड़ा है। तू उठ उसे निहार तो सही ।' सखियों ने उसके चेहरे पर से कमलपत्र हठाते हुए उसकी ओर गौर से देखा । हम तीनों घबरा उठे। राजकुमारी की आँखें मूँदी हुई थी। अंगोपांग शिथिल बन चुके थे। दोनों कन्याओं ने उसके शरीर पर हाथ फिराया। उसके श्वासोश्वास को छूने का प्रयत्न किया, पर वे तो बंद थे। सीने की धड़कन बंद थी। दोनों फूट-फूट कर रोने लगी। मेरी ओर आँसूभरी निगाहें उठाते हुए कहा : 'देखो कामगजेन्द्र, हमारी यह सहेली हमें रोती बिलखती छोड़कर चली गई। हाय, नियति ने यह क्या कर डाला? किस्मत की कालीन पर कैसी मायूसी के कदम छा गये ?' उन दोनों की दर्दनाक रंजिश ने मुझे भीतर तक छलनी सा बना डाला। मैं भी उस मृत राजकुमारी के समीप जा बैठा । मेरी पलकों की ओट में आँसूओं की बाढ़ सी आ रही थी। मेरे होठ फड़फड़ा उठे : 'ओ अनजान मुग्धे ! प्रियतमे! इस तरह क्यों मेरे विरह से तुमने प्राण त्याग दिये ? एक बार तो आँखें खोल, मेरी तरफ देख | मैं कामगजेन्द्र तेरी हर कामना को साकार करने के लिए तैयार हूँ। यों बोलते-बोलते मैं स्वयं बेहोश हो गया। अल्प समय में मेरी बेहोशी दूर हो गई। दोनों विद्याधर कुमारियों की वेदना असह्य थी। मृत राजकुमारी को अपनी गोद में लेकर वे करुण स्वर में रोने लगीं। उन्होनें मुझे कहा : 'ओ कामगजेन्द्र ! हमने जिसकी बात कही थी तुमसे, वो ही यह हमारी प्राणप्रिय सहेली और राजकुमारी तुम्हारे विरह में सुबक- सुबक कर जीवन मुक्त बन गई। अब हम इसके माता-पिता को क्या जवाब देंगे ? अब हम करें भी क्या ? यों कहती हुई वे रोने लगीं।
मेरा मन बहुत मायूस था । 'क्या करूँ और क्या न करूँ ?' मुझे कुछ सूझता ही नहीं था। मैंने कहा : 'यह ऐसी अकल्प्य घटना है कि खुद मुझे भी कुछ
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