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मन की बात मद्धिम-मद्धिम रौशनी दे रहे थे। मध्यरात्रि का समय हो चुका था। कामगजेन्द्र का चित्त वातावरण की नीरवता में विचारों से मुक्त होने लगा। पश्चिम से आने वाली मन्द-मन्द हवा के झोंके कामगजेन्द्र को स्पर्श कर रहे थे अचानक प्रियंगुमति की आँखें खुल गई।
'अरे, क्या आप अभी भी जाग रहे हैं?' वह उठकर पलंग में बैठ गई। 'अब नींद आ रही है।' कामगजेन्द्र प्रियंगुमति की गोद में सर रखकर सो गया। प्रियंगुमति उसके काले-काले धुंघराले बालों को अपनी करांगुलियों से सहलाने लगी। कामगजेन्द्र को नींद आ गई।
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