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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ मन की बात कामगजेन्द्र ने नीलाकाश में नजर फेंकी। चन्द्रमा की शीतल किरणों का जाल पृथ्वी पर बिछा जा रहा था। खिली हुई चाँदनी और समीप के उद्यान में महकते हुए रजनीगंधा के फूल वातावरण को सुहावना बना रहे थे। उसके चेहरे पर गम्भीरता छा गयी । ___ 'अरे, आप इतने नाराज क्यों हो रहे हो? आखिर आप मना क्यों कर रहे हैं?' प्रियंगुमति ने कामगजेन्द्र के चेहरे को अपनी हथेलियों में बाँध लिया। ___ 'मैं तेरे प्यार को धोखा देना नहीं चाहता।' प्रियंगुमति के सामने बिना देखे ही कुछ दर्दभरी आवाज में कामगजेन्द्र ने कहा। "जिनमति के साथ शादी करने में मेरे प्यार को धोखा कैसे? मैं ही तो आपको कह रही हूँ, बड़ी प्रसन्नता से कह रही हूँ, जिनमति को मैं बहुत चाहती हूँ, उसे मैं हमेशा-हमेशा के लिए मेरे समीप, मेरे पास... ___ 'हाँ, मैं समझ गया देवी, तुम जिनमति को क्यों चाहती हो? चूँकि तुम मुझे चाहती हो, मेरे सुख की खातिर, मेरे मन की वासना हेतु तुम अपने सुख स्वेच्छया त्याग कर रही हो।' कामगजेन्द्र ने प्रियंगुमति के हाथों को अपनी हथेलियों में जकड़कर प्रियंगुमति की ओर देखा । प्रेम और समर्पण की साकार प्रतिमा का रूप उसने प्रियंगुमति के व्यक्तित्व में पाया। 'तूने मुझे क्या नहीं दिया? तेरे में कमी भी क्या है?' कामगजेन्द्र की आवाज में टीसें उभरी। उसकी आँखें छलछला गयी। 'मैं आपकी ही हूँ न? आपमें ही तो मैंने अपना सर्वस्व विलीन किया है। आपकी खुशी के लिए मैं हर समय तैयार हूँ। आपसे बढ़कर भला मेरे लिए क्या होगा?' 'तो फिर क्यों जिनमति के साथ शादी करूँ?' मेरे लिए, जिनमति के लिए, वह आपको हृदय से चाहती है, क्या आप नहीं पहचान पाये उसकी मनोकामना को? अभी-अभी वह कैसी लाजवन्ती की भॉति शरमा गयी थी आपको देखकर? उसकी हर धड़कन में मानों आपकी ही स्मृति है। पिछले कई दिनों से वह आती तो है मुझसे मिलने के लिए, पर उसकी आँखें आपको ही ढूँढ़ती रहती है। आपको देखकर उसका चेहरा कैसा खिल उठता है? उसका पूरा अस्तित्व महक उठता है। प्रियंगुमति की कल्पना में जिनमति की सोकर उठे हुए निर्दोष मृगछौने सी अलस आँखें तैर आयी। 'देवी, मैं नहीं चाहता तुमसे मेरे मन की बात छिपाना, मुझे जिनमति के For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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